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________________ चित्त-समाधि : जैन योग (३) तिर्यग् भाग-समतल भाग । साधक देखे—शरीर के अधो भाग में स्रोत है, ऊर्ध्व भाग में स्रोत हैं और मध्य भाग में स्रोत है–नाभि है। मिलाइये ५/११७. शरीर को समग्र दृष्टि से देखने की साधना-पद्धति बहुत महत्त्वपूर्ण रही है । प्रस्तुत सूत्र में उसी शरीर-विपश्यना का निर्देश है। इसे समझने के लिए "विशुद्धिमग्ग" छट्ठा परिच्छेद पठनीय है । (विशुद्धिमग्ग, भाग १, पृ० १६०-१७५) । २. प्रस्तुत सूत्र की व्याख्या का दूसरा नय है दीर्घदर्शी साधक देखता है-लोक का अधो भाग विषय-वासना में ग्रासक्त होकर शोक आदि से पीड़ित है। लोक का ऊर्ध्व भाग भी विषय-वासना में पासक्त होकर शोक आदि से पीड़ित the लोक का मध्य भाग भी विषय-वासना में प्रासक्त होकर शोक आदि से पीड़ित the ३. प्रस्तुत सूत्र की व्याख्या का तीसरा नय यह है--- दीर्थदर्शी साधक मनुष्य के उन भावों को जानता है, जो अधो गति के हेतु बनते हैं; उन भावों को जानता है, जो ऊर्ध्व गति के हेतु बनते हैं; उन भावों को जानता है, जो तिर्यग् (मध्य) गति के हेतु बनते हैं। ४. इसकी त्राटक-परक व्याख्या भी की जा सकती है अांखों को विस्फारित और अनिमेष कर उन्हें किसी एक बिन्दु पर स्थिर करना त्राटक है। इसकी साधना सिद्ध होने पर ऊर्ध्व, मध्य और अधर ये तीनों लोक जाने जा सकते हैं। इन तीनों लोकों को जानने के लिए इन तीनों पर ही त्राटक किया जा सकता है। भगवान् महावीर ऊवं लोक, अधो लोक और मध्य लोक में ध्यान लगाकर समाधिस्थ हो जाते थे (पायारो, ६/४/) । इससे ध्यान की तीन पद्धतियां फलित होती हैं(१) अाकाश-दर्शन, (२) तिर्यग् भित्ति-दर्शन, (३) भूगर्भ दर्शन । आकाश-दर्शन के समय भगवान ऊर्ध्व लोक में विद्यमान तत्त्वों का ध्यान करते थे। तिर्यग् भिति दर्शन के समय वे मध्य लोक में विद्यमान तत्त्वों का ध्यान करते थे। भूभर्ग-दर्शन के समय वे अधोलोक में विद्यमान तत्त्वों का ध्यान करते थे । ध्यानविचार में लोक-चिन्तन को प्रालंबन बताया गया है। ऊर्ध्व लोकवर्ती वस्तुओं का चिन्तन उत्साह का पालम्बन है। अधो लोकवर्ती वस्तुओं का चिन्तन पराक्रम का आलम्बन है । तिर्यग् लोकवर्ती वस्तुओं का चिन्तन चेष्टा का आलंबन है । लोक-भावना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003671
Book TitleChitta Samadhi Jain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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