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________________ आयारो सामूहिक साधना संबाहा बहवे भुज्जो-भुज्जो दुरतिक्कमा अजाणतो अपासतो । ५/६५ एयं ते मा होउ । ५/६६ एयं कुसलस्स दंसणं । ५/६७ तद्दिट्ठीए तम्मोत्तीए तप्पुरक्कारे तस्सण्णी तन्निवेसणे । ५/६८ इहमेगेसि एगचरिया भवति–से बहुकोहे बहुमाणे बहुमाए बहुलोहे बहुरए बहुनडे बहुसढे बहुसंकप्पे, पासवसक्की पलिउच्छन्ने, उट्ठियवायं पवयमाणे “मा मे केइ अदक्खू" अण्णाण-पमाय-दोसेणं, सययं मूढे धम्म णाभिजाणइ । ५/१७ एकाकी साधना मोहेण गब्भं मरणाति एति । ५७ गामाणगामं दूइज्जमाणस्स दुज्जात दुप्परक्कतं भवति अवियत्तस्रा भिक्खुणो।७३ ५/६२ उन्नयमाणे य णरे, महता मोहेण मुज्झति । ५/६४ समाधिमरण कायस्स विनोवाए, एस संगामसीसे वियाहिए। से हु पारंगमे मुणी, अवि हम्ममाणे फल गावयट्ठि, कालोवणीते कंखेज्ज कालं, जाव सरीरभेउ । -त्ति बेमि ६/११२ जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति---से गिलानि च खलु अहं इमम्मि समए इमं सरीरगं अणुपुव्वेण परियहित !, से प्राणुपुव्वेणं ग्राहारं संवटेज्जा, प्राणुपुब्वेणं, पाहारं संवट्टेत्ता, कसाए पयणुए किच्चा समाहिअच्चे फलगावयट्ठी, उट्ठाय भिक्खू अभिणिव्वुडच्चे । ८/१२५ टिप्पण--१ १. चित्त को काम-वासना से मुक्त करने का पहला पालम्बन है---लोक दर्शन । (१) लोक का अर्थ है ---भोग्य वस्तु या विषय । शरीर भोग्य वस्तु है। उसके तीन भाग हैं-- (१) अधो भाग-----नाभि से नीचे, (२) ऊर्ध्व भाग-नाभि से ऊपर, (३) तिर्यग् भाग---नाभि-स्थान । प्रकारान्तर से उसके तीन भाग ये हैं--- (१) अधो भाग--प्रांख कागड्ढा, गले का गड्ढा, मुख के बीच का भाग । (२) ऊर्ध्व भाग---घुटना, छाती, ललाट, उभरे हुए भाग । www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.003671
Book TitleChitta Samadhi Jain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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