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चित्त-समाधि : जैन योग
अभिनव कायोत्सर्ग का काल जघन्यतः अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्टतः एक वर्ष का बाहुबलि ने एक वर्ष का कायोत्सर्ग किया था।
प्रतिचार-शुद्धि के लिये किये जाने वाले कायोत्सर्ग के अनेक विकल्प होते हैं१. देवसिक-कायोत्सर्ग। २. रात्रिक-कायोत्सर्ग। ३. पाक्षिक-कायोत्सर्ग। ४. चातुर्मासिक-कायोत्सर्ग । ३. साम्वत्सरिक-कायोत्सर्ग ।
कायोत्सर्ग आवश्यक का पांचवां अंग है। ये उक्त कायोत्सर्ग प्रतिक्रमण के साथ किये जाते हैं । इन (कायोत्सर्ग) से चतुर्विशस्तव का ध्यान किया जाता है। उसके सात श्लोक और अट्ठाईस चरण हैं । एक उच्छ्वास में एक चरण का ध्यान किया जाता है। कायोत्सर्ग-काल में सातवें श्लोक के प्रथम चरण 'चन्देसु निम्मलयरा' तक ध्यान किया जाता है । इस प्रकार एक 'चतुर्विशस्तव' का ध्यान पच्चीस उच्छ्वासों में सम्पन्न होता है। प्रवचनसारोद्धार और विजयोदया के अनुसार इनके ध्येय-परिमाण और काल-मान इस प्रकार हैं
प्रवचनसारोद्धार
चतुर्विशस्तव श्लोक चरण उच्छ्वास १. देवसिक २. रात्रिक
१२-१/२ ५० ३. पाक्षिक
३०० ४. चातुर्मासिक
१२५
५०० ५. साम्वत्सरिक
२५२ १००८ १००८
विजयोदया
चतुर्विशस्तव श्लोक __ चरण उच्छ्वास १. देवसिक
२५ १०० १०० २. रात्रिक
१२-१/२ ५० ३. पाक्षिक
१२ ७५
३०. ४. चातुर्मासिक १६
१०० ४०० ४०० ५. साम्वत्सरिक
१२५ ५०० ५०० प्रमितगति-श्रावकाचार के अनुसार देवसिक कायोत्सर्ग में १०८ तथा रात्रिक कायोत्सर्ग में ५४ उच्छ्वास तक ध्यान किया जाता है और अन्य कायोत्सर्ग में २७ उच्छ्वास तक । २७ उच्छ्वासों में नमस्कार-मंत्र की नौ आवृत्तियां की जाती हैं । अर्थात् तीन उच्छ्वासों में एक नमस्कार-मंत्र पर ध्यान किया जाता है, संभव है प्रथम दो-दो बाक्य एक-एक उच्छ्वास में और पांचवां वाक्य एक उच्छ्वास में। अथवा 'एसो
२५
७५
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५०
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