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ठाणं
१०३ क्षीणता, ३. भय, विस्मय और लोभ का प्रभाव, ४. अति गंभीरता।
६२. अधोवधि-अवधिज्ञान के ११ द्वार हैं-भेद, विषय, संस्थान, आभ्यन्तर, बाह्य, देश, सर्व, वृद्धि, हानि, प्रतिपाति और अप्रतिपाति ।
इन ग्यारह द्वारों में देश और सर्व दो द्वार हैं। देशावधि का अर्थ है—अवधिज्ञान द्वारा प्रकाशित वस्तुओं के एकदेश को जानना । सर्वावधि का अर्थ है---अवधिज्ञान द्वारा प्रकाशित वस्तुओं के सर्वदेश को जानना।
प्रज्ञापना में अवधिज्ञान के ये दो प्रकार मिलते हैं—देशावधि और सर्वावधि । जयधवला में अवधिज्ञान के तीन भेद किए गये हैं-देशावधि, परमावधि, सर्वावधि । देशावधि से परमावधि और परमावधि से सर्वावधि का विषय व्यापक होता है। प्राचार्य अकलंक के अनुसार परमावधि का सर्वावधि में अन्तर्भाव होता है, अतः वह सर्वावधि की तुलना में देशावधि ही है। इस प्रकार अवधि के मुख्य भेद दो ही हैं ।
अधोवधि देशावधि का ही एक नाम है। देशावधि, परमावधि व सर्वावधि से अधोवर्ती कोटि का होता है, इसलिए यहां देशावधि के लिए अधोवधि का प्रयोग किया गया है । अधोवधिज्ञान जिसे प्राप्त होता है, उसे भी अधोवधि कहा गया है। अघोवधि का फलितार्थ होता है, नियत क्षेत्र को जानने वाला अवधिज्ञानी ।
६३. वृत्तिकार ने केवलकल्प के तीन अर्थ किए हैं१. अपना कार्य करने की सामर्थ्य के कारण परिपूर्ण । २. केवलज्ञान की भांति परिपूर्ण । ३. सामयिकभाषा (आगमिक-संकेत) के अनुसार केवलकल्प अर्थात् परिपूर्ण ।
प्रस्तुत प्रसंग में यह बताया गया है कि अवोवधि पुरुष सम्पूर्ण लोक को जानतादेखता है।
तत्त्वार्थवार्तिक में भी देशावधि का क्षेत्र जघन्यतः उत्सेधांगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्टतः सम्पूर्ण लोक बतलाया गया है ।
६४. वृत्तिकार ने 'देशेन शृणोति' और 'सर्वेण शणोति' की साधना और विषय के आधार पर अर्थ-योजना की है। जिसका एक कान उपहत होता है, वह देशेन सुनता है और जिसके दोनों कान स्वस्थ होते हैं, वह सर्वेण सुनता है। शेष इन्द्रियों के लिए निम्न यंत्र द्रष्टव्य है-- देशेन
सर्वेण एक भाग से स्पर्श करना सम्पूर्ण शरीर से स्पर्श करना रसन जीभ के एक भाग से चखना सम्पूर्ण जीभ से चखना घ्राण एक नथुने से सूंघना
दोनों नथुनों से सूंघना एक आंख से देखना
दोनों प्रांखों से देखना
स्पर्शन
चक्षु
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