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________________ प्रतिष्ठा कर सपरिबार पूजा की थी। उक्त पुरुष पुरोहित है, जो पूजा कराने की मुद्रा में है। दूसरा पुरुष राजा खारवेल जो पहले पुरुष के पीछे खडे हैं। उनके पीछे एक महिला है। यह रानी होना चाहिए। उनके पीछे सम्भवत: राजकुमार कुदेप भी हैं। पूरा राजपरिवार हाथ जोडे खड़े हुए ऐसे प्रतीत होते हैं। मानो वे भगवान की स्तुति कर अर्घ चढ़ाने का अनुष्ठान कर रहे हैं। वाद्य बजाते हुए दो गंधर्व भी उत्कीर्णित हैं। राजकुमार के सिर के ऊपर उगता हुआ एक सूर्य भी चित्रित है। राज परिवार के पीछे एक हाथी भी खड़ा दृष्टिगत होता है। जो इस बात का प्रतीक है कि उसी पर सवार हो कर उक्त राजपरिवार आया था। हाथी के ऊपरी भाग में विद्याधर को उड़ते हुए दिखाया गया है। उसके बायें हाथ में पूजा-सामग्री से युक्त एक थाली है और दूसरा हाथ उठा हुआ है। उक्त तोरण के अवशिष्ट स्थान में बौनी आकृतियों द्वारा सहारा दिये हुए तीन जंगला विद्यमान हैं। दाहिने कमरे के पहले और दूसरे अर्थात् तीसरे और चौथे दरवाजे के मध्य में निम्नांकित एक पंक्ति का अभिलेख है। एरस महाराजस कलंगाधिपतिनो महामेघवाहनस कुदेपसिरिनोलेणं। अर्थात् कलंगाधिपति महाराज आर्य महामेघवाहन कुदेप सिरि (श्री) की यहगुंफा है। इसके बगल के तीसरे कमरे के पश्चिम की ओर एक छोटी कोठी है, जो पूर्व . से पश्चिम तक विस्तृत फैली हुई है। इसमें दो प्रवेश दरवाजे हैं। इसका फर्श खुदा हुआ है और छत दरारी हुई है। इस में कला का अभाव है। इस कोठी के सामने तीन ओर बेंचों से युक्त एक बरामदा है। इसे दो अन्तरिक एक भारी घनाकार स्तम्भ संभाले हुए हैं। इस बरामदे के बाहार भी दोनों ओर एक-एक चौकीदार उत्कीर्णित हैं। इस गुफा के मुख्य भवन के बाहर के ऊपरी सतह पर कमल, हाथी, घोड़े आदि की आकृति बनी हुई हैं, जो अब नष्ट हो रही हैं। इसके आंगन के सामने नष्ट हुई गुंफा का समतल मैदान भी कतिपय वर्षों पूर्व निकाला गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003670
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherJoravarmal Sampatlal Bakliwal
Publication Year2006
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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