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मंजिल के सामने खुली छत यावे दिका सी बनी हुई प्रतीत होती है। बरामदा की छत को नौ मोटे तथा शक्तिशाली खम्भे संभाले हुए हैं। इन में सात स्तम्भ बिल्कुल नवीन है । दो की मध्य काल में मरम्मद की गई है। उन स्तम्भों के अवशेषों से स्पष्ट है कि मौलिक स्तम्भ ब्रैकेड्सों के साथ एक ही बार लगाये गये थे। बरामदा की पूरी लम्बाई के बराबर लगातार लम्बी बेंच बरामदा की पीछे की दीवाल के बगल से बनी हुई है। बरामदा की छत सामने से समतल है। बरामदा की छत से चूनेवाले पानी को निकालते के लिए सजीव चट्टान को काट कर खांचो सहित गहरी नाली बनाई गई है। इस मंजिल के प्रमुख भाग में चार कोठे बने हुए हैं। इनके द्वार मार्ग की चौखट के रूप में बगल में स्तम्भ लगे हुए हैं। इनके मध्यवर्ती भाग में पंख युक्त जानवरों को उत्कीर्णित किया गया है। अर्ध स्तम्भों के शीर्ष से होते बना हुआ तोरण विभिन्न प्रकार की वनस्पतीय और पुष्पीय चिन्हों माधवी लताओं मधुमालती लताओं, वेलों, और बच्चों द्वारा भगाये गये जानवरों से सुरुचिपूर्ण और मनमोहक है। इन तोरणों के शीर्ष भाग पर श्रीवत्स, नन्दिपाद, सर्प और कमल निर्मित किये गये हैं। तोरण के बीच के स्थान विभिन्न दृश्यों के उत्कीर्णित बहुत सुन्दर प्रतीत होते हैं। उन में से कुछ दृश्य जो बायीं ओर से बने हुए अच्छी अवस्था में संरक्षित हैं। उनका संक्षेप में विवरण प्रस्तुत किया जा रहा हैं।
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हाथ में पूजा की सामग्री लेकर दैड़ते हुए गन्धर्व
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