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इसी कारण से इस गुफा को जगन्नाथ गुंफा के नाम से जाना जाता है। उक्त दीर्घाकार प्रकोष्ठ में चार प्रवेश द्वार है। एक बेंचं वाला बरामदा है। इस बरामदे को तीन खम्भी संमाले हुए हैं। लैम्प आदि रखने के लिए इसमें तीन आला (ताक) हैं। दो आले (Niches) प्रकोष्ठ की दीवाल पर और एक बरामदा के खम्भे पर है। स्तम्भों और घनाकार खम्भों पर हिरन, पंख युक्त जानवर, मछलियों, फूल और पौधों से युक्त हैं। इसके अलावा ब्रेकेटों पर गण, विद्याधर तस्तरी में माला रखे हुए, पंख वाले किन्नर की युगलों की आकृतियाँ उभरी हुई हैं। खम्भे के ब्रेक्रेट के ऊपर एक मूर्ति भी है। जिसमें एक सारस अपने गले से कांटा निकलावाने के लिए अपना मुँह गण की तरफ खोले हुए है। यह बहुत सुन्दर और आकर्षक चित्र है ।
१८. रसोई गुम्फा
रसोई गुम्फा को रन्धन गुंफा भी कहते हैं। यह गुम्फा जगन्नाथ गुम्फा की बांई ओर और उससे सटी हुई है। यह एक बहुत छोटे कमरे वाला आवास गृह है। इसके पतले और सकरे खम्भों पर एक बरामदा निर्मित है। इसके सामने के ऊबड़-खाबड पत्थरों को खोद कर निकाल दिया गया है ।
दन्त कथा है कि जब इसके दाहिने भाग में स्थित जगन्नाथ गुंफा में भगवान श्रीजगन्नाथ की पूजा होती थी तो इसी गुंफा में महाप्रसाद तैयार होता था, इस लिए इस गुंफा का नाम रसोई या रन्धन गुंफा हुआ है।
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