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३. खण्डगिरि की गुफाओं का शिल्प सौन्दर्यः
उदयगिरि की तरह खण्डगिरि भी युग्म पहाड़ियों में से एक है। दोनों को एक आधुनिक रोड विमाजित करता है। यह भुवनेश्वर शहर के नजदीक है। इसकी उँचाई १२३ फीट है। खण्डगिरि का प्राचीन नाम कुमार पर्वत है। एन.के.साहु कहते है कि कुमार पर्वत से खण्डगीरी का नाम खण्डशब्द ब्राह्मनी कल शब्द स्कन्ध से बना है। जैन प्राकृत में स्क के स्थान ख और ध के स्थान पर ड हो जाने पर खन्ड हो जाता है। इस प्रकार प्राचीन नाम कुमार गिरि खण्डगिरि में परिवर्तित हो गया। १८ वी १९ वीं शताब्दी में रचे गये उड़ीसा संस्कृत साहित्य में खण्डगिरि को खण्डाचल कहा गया है। भगवान् भुवनेश्वर के उत्तर पूर्व में डेढ़ कोश की दूरी पर खण्डाचल नामक सुन्दर और अनेक प्रकार के वृक्षों से ढकी हुई पवित्र पहाड़ी है। जो जंगली जीवों का आश्रयस्थल है। यहाँ सदैव शीतल हवायें चलती रहती हैं और उदयाचल पहाड़ी से संयुक्त है। इस पहाड़ी पर अनेक गुंफायें मंदिर और जलाशय बनाये गये थे। यह धार्मिक और आध्यात्मिक क्रियाकलापों की केन्द्र रही। खण्डगीरी की गुंफाओं में उत्कीर्णित शीलालेखों से ज्ञात होता है कि ई.सन्. ९वीं शताब्दी के पश्चात् कुमार पर्वत का महत्व जैन धर्म और संस्कृति के कारण अत्यधिक बढ़ गया था । १०वी ११वीं शताब्दी तक कुमार पर्वत जैन धर्म का सुदृढ़ गढ़ बन गया था। यहाँ पर निम्नांकित गुंफायें अवशेष हैं।
तातोवा गुम्फा नं १ तातोवा गुम्फा नं २ अनन्त गुम्फा तेन्दुल गुम्फा खण्डगिरि गुम्फा ध्यान गुम्फा नवमुनि गुम्फा बारहभुजी गुम्फा त्रिशूल अथवा महावीर या सत्बखरा गुम्फा
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