SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० हे प्रभो ! तेरापंथ गये, लगभग १४ वर्ष के दीक्षाकाल में आपने कुल २६६६ दिन यानी लगभग १० वर्ष का समय निराहार तपस्या में बिताया। तपस्या के आंकड़े इस प्रकार हैं १/४५१, २/७८१, ३/७६, ४/१७, ५/५, ६/१, ७/२, ८/१, ९/१, १०/१, ११/१, १२/१, १३/१, १४/१, २०/१, २२/१, २५/१, ३०/१, ३२/१, ६०/१, ६४/१, १०१/१, १८१/१ ___ आपने संवत् १८८५ से तीन वर्ष चार माह तक एकान्तर तप, संवत् १८८८ से सात वर्ष तक बेले की तपस्या व संवत् १८६५ से एक वर्ष तक तेले की निरन्तर तपस्या की। शीतकाल में आप वस्त्र नहीं ओढ़ते, आपने औषधि कभी नहीं ली । तपस्या में भी गोचरी अवश्य जाते, विहार करने में आपकी तीव्र गति थी व आप कुशल संदेशवाहक थे । तपस्या में आप अभिग्रह अवश्य करते। मुनि श्री रामसुखजी जैसे उत्कट तपस्वी के देवलोक होते ही आपने आमरण अनशन कर लिया व युवाचार्य श्री जीतमलजी के सान्निध्य में संवत् १८६६ सावन वदि १ को स्वर्ग प्रयाण कर गए । 'अभिराशिको' बीज मंत्र में तपस्वी स्मरण व जाप का अन्तिम अक्षर आपके नाम पर है। २. मुनि गुलहजारीजी ___मुनि गुलहजारीजी हरियाणा प्रांत में नगुरा के निवासी व जाति से अग्रवाल थे। इनके पिता का नाम रामधनजी व माता का नाम कड़िया बाई था। वे चूरू में नौकरी करते थे, तब सं० १८८६ में श्रीमद् ऋषिराय से वहां सम्पर्क होने पर आप तेरापंथी बने व संवत् १८८७ में वहां चातुर्मास में मुनि जीतमलजी की खूब सेवा की। मुनि जीतमलजी संवत् १८८८ में बीकानेर चातुर्मास संपन्न कर हरियाणा होते हुए दिल्ली पधार रहे थे, तब चूरू में गुलहजारीजी ने आपके पास दीक्षा ली। मुनि जीतमलजी के हाथ से सन्तों की व हरियाणा की यह प्रथम दीक्षा थी । संवत् १८८६ में सात दिन के लिए शंका पड़ने पर गण के बाहर रहे पर फिर जीवन-पर्यन्त दृढ़ रहे। उन्हें तत्त्वज्ञान की बहुत सूक्ष्मता से जानकारी थी। वे बड़े साहसी, पुरुषार्थी व उत्कट तपस्वी थे। उन्होंने अपने हाथ से १६ व्यक्तियों को प्रतिबोध देकर दीक्षित किया। उन्होंने उपवास से ११ तक लड़ीबद्ध तपस्या की। ४२ वर्ष तक सतत एकांतर तप किया व चौदह वर्ष तक पारणे में निर्धारित ११ द्रव्यों के अलावा कुछ नहीं लिया । वे प्रकृति के फक्कड़ व स्पष्टभाषी थे । उनका कहा वचन प्रायः सत्य चरितार्थ हो जाता था। सं० १६३४ के आसोज वदि १२ को चूरू में आप समाधिमरण को प्राप्त हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy