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________________ तृतीय आचार्य श्रीमद् ऋषिराय (रायचंदजी) ४६ ६. माता ब तीन पुत्रों की दीक्षाएं । १०. माता-पुत्री ५ युगल दीक्षाएं। ११. वस्त्राभूषण सहित मुनि हरकचंदजी को मुनि हेमराजजी ने १६०२ में दीक्षा दी। १२. आपके समय में दीक्षित मुनि कालूजी ने सप्तमाचार्य डालगणी का चुनाव किया व मुनि मघराजजी पंचमाचार्य बने एवं साध्वी सरदारोंजी प्रथम साध्वी-प्रमुखा व नवलोंजी तीसरी साध्वी-प्रमुखा बनीं। तपस्याएं तपस्याओं में आपके शासनकाल में मुनिश्री वर्द्धमानजी, श्री पीथलजी, श्री मोतीजी, श्री दीपजी, श्री कोदरजी व श्री शिवजी ने छः मासी तपस्या की। मुनि हीरजी ने दो छ: मासी तप किए। ___ आपके जीवन की घटनाओं का विस्तृत एवं प्रामाणिक विवरण श्रीमद् जयाचार्य विरचित प्रबन्ध काव्य 'ऋषिराय सुजश', मुनिश्री बुधमल्लली लिखित 'तेरापंथ का इतिहास', मुनिश्री नवरत्नमलजी द्वारा लिखित 'शासन समुद्र, भाग २' एवं श्रीचन्दजी रामपुरिया द्वारा लिखित 'आचार्य भिक्षु : धर्म परिवार' आदि पुस्तकों में मिलता है। संक्षेप में आपका शासनकाल तेरापंथ के विकास की किरणों के विकिरण का प्रारम्भिक काल कहा जा सकता है। प्रमुख शिष्य-शिष्याएं १. मुनिश्री कोदरजी आपका जन्म बड़मगर-निवासी ताराचंदजी बिनायकिया व उनकी धर्मपत्नी मृगादेवी के समृद्ध घराने में हुआ। सं० १८६६ में मुनिश्री वेणीरामजी के बड़नगर पधारने पर आपका परिवार तेरापंथ का अनुयायी बना। संवत् १८७८ में मुनि गुलाबजी व साध्वी अजबूजी के उज्जैन चातुर्मास में आपने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार किया। संवत् १८८१ में मुनिश्री स्वरूपचन्दजी के उज्जैन चातुर्मास काल में प्रेरणा मिलने पर सं० १८८१ के जेठ वदि २ को आपने कंटालिया में आचार्यप्रवर से दीक्षा प्राप्त की। आप बड़े त्यागी, विरागी, सेवाभावी व उत्कृष्ट कोटि के तपस्वी हुए। आपका शारीरिक संस्थान, संहनन, सुदृढ़ व शक्तिशाली था। संवत् १८६६ श्रावण वदि १ को आप दिवंगत हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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