SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८ हे प्रभो ! तेरापंथ -पधारे । आपको कुछ समय से श्वास की व्याधि रहती थी पर आप साहसी थे व उसकी परवाह नहीं करते थे। माघ वदि १४ को आपको श्वास की गति तेज होने से भारीपन महसूस हुआ। प्रतिक्रमण करने के थोड़ी देर बाद आप सो गए पर सोते ही शरीर में पसीना-पसीना होने लगा व श्वास की गति तेज हो गई, तब आप पुन: बैठ गए। कुछ सन्त आपकी पीठ को हाथ का सहारा देकर बैठे ही थे कि मृत्यु ने यकायक आप पर आक्रमण कर दिया। कुछ ही क्षणों में आपका शरीर शान्त हो गया। सं० १६०८ माघ कृष्णा चतुर्दशी को लगभग एक मुहूर्त बीत जाने पर वह रात्रि सचमुच कालरात्रि बन गई व जैन जगत् का जगमगाता सूर्य अस्त हो गया। उपलब्धियां आपके शासनकाल में दो सौ पैंतालिस-७७ साधु व १६८ साध्वियों की दीक्षाएँ हुईं। आपके आठ चातुर्मास पाली (सं० १८७६, ८२, ८६, ६०, ६३, ६६, १६०२ व ५), चार जयपुर (१८८०,६२,६७, १६००) एक पीपाड़ (१८८१), चार उदयपुर (१८८३,८६,६५, १६०८), एक पेटलावद (१८८४), पांच नाथद्वारा (सं० १८८५,८८,६४, १६०१,४), दो बीदासर (१८८७,६६), एक गोगुंदा (१८६१), एक पुर (१८६४), दो लाडनूं (१८६८, १६०६) हुए। आपके .समय में मुनि जीतमलजी ने सं० १८८६ का चातुर्मास दिल्ली किया व उनके साथ गुजरात यात्रा कर आप ईडर होते अहमदाबाद तक पहुंचे। आपने कच्छ, सौराष्ट्र व गुजरात की यात्रा के दौरान वहां समझे भाइयों के निवेदन पर मुनि श्री कर्मचन्दजी का चातुर्मास बेला व मुनि श्री ईसरजी का चातुर्मास वीरमगाँम .कराया। दोनों स्थानों पर अच्छा धर्म-प्रचार हुआ और कच्छ, सौराष्ट्र तेरापंथ के क्षेत्र बन गए । बीदासर, उदयपुर, गोगुन्दा व लाडनूं' में तेरापंथ के आचार्यों का प्रथम चातुर्मास आपने ही किया। - आपका शासनकाल दीक्षाओं की विविधता व तपस्या की दृष्टि से भी अपूर्व रहा । दीक्षाओं की विशेषताएं इस प्रकार रहीं१. दस कुमारी कन्याओं की दीक्षाएं । २. चार युगल (स्त्री-पुरुष) दीक्षाएं। ३. सुहागिन बहनों की चार दीक्षाएं। ४. अविवाहित कुमारों की ११ दीक्षाएं । ५. पत्नी छोड़ १२ मुनि दीक्षाएं। ६. बहन-भाई की दो युगल दीक्षाएं। ७. पिता-पुत्र युगल १ दीक्षा ।. ८. सारे भाइयों की ३ की एक व दो की एक दीक्षा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy