SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेरापंथ का उदयकाल 8 संघ के यशस्वी आचार्य होने पर भी संभवतः राजघराने से सम्बन्ध होने के कारण उनका रजोगुण पूर्ण रूप से तिरोहित नहीं हो पाया, और संभवत; यही कारण था कि वे अपने शिष्य की उचित व विनम्र प्रार्थना पर, उसके सारे सद्प्रयासों के उपरान्त, सहमत नहीं हो सके । भिक्षु स्वामी का संवत् १८१६ का चातुर्मास जोधपुर हुआ, जहां उनके चाचा गुरु आचार्य जयमलजी का भी चातुर्मास था । चातुर्मास-काल में आचार्य जयमलजी से उनकी विशद वार्ता हुई और वे सरलमना होने के कारण भिक्षु स्वामी के मन्तव्यों से सहमत हो गए। आचार्य जयमलजी बड़े विद्वान, साहित्य-सर्जक व श्रेष्ठ प्रवचनकार थे। उनकी दीक्षा १६ वर्ष की आयु में मेड़ता में संवत् १७८७ की मिगसर वदि २ को हुई। १६ वर्ष तक उन्होंने एकान्तर तप किया। अपने गुरु के स्वर्गवास के बाद २५ वर्ष तक वे लेटकर नहीं सोये । ऐसे त्यागी पुरुष के गले भिक्षु स्वामी की सारी बात सहज उतर गईं । आचार्य रुघनाथजी को जब यह मालूम हुआ, तो उन्होंने सोजत के श्रावकों के माध्यम से, आचार्य जयमलजी को कहलवाया कि यदि वे भिक्षु के साथ हो गए; तो उनकी कोई प्रतिष्ठा नहीं रहेगी और उनके भरोसे, जो साधु-साध्वी दीक्षित हुए हैं, उनके साथ विश्वासघात हो जायेगा, और 'फकीर के दुपट्टे' वाली कहावत चरितार्थ हो जायेगी। आचार्य रुघनाथजी के आग्रह भरे संदेश से आचार्य जयमलजी का मन विचलित हो गया। उन्होंने भिक्षु स्वामी को अपना श्रेय मार्ग चुनने के लिए प्रेरित किया व उनके प्रति सद्भावना प्रकट कर सहयोग देने का आश्वासन दिया पर उनके साथ होने में अपनी असमर्थता प्रकट की। अभिनिष्क्रमण और विरोध का तूफान ___ एक ओर भिक्षुस्वामी के मानस में सत्य-क्रान्ति की धारा प्रस्फुटित होने को आतुर हो रही थी, पर अपने गुरु को छोड़ना उन्हें प्रियकर नहीं था, तो दूसरी ओर उनके गुरु के मन में उनके प्रति अविश्वास की दरार. काफी चौड़ी हो चुकी थी और उन्हें आशंका थी कि भिक्षु उनके अन्य शिष्यों को अपने संग ले जायेगा, अतः वे भी भिक्षु स्वामी से संबंध-विच्छेद करने की सोच रहे थे, हालांकि वे यह भी जानते थे कि भिक्षु जैसा मेधावी एवं प्रखर शिष्य जाने से संघ में रिक्तता आ जाएगी व संघ का भविष्य धुंधला हो जाएगा। दोनों ओर इसी तरह के ऊहापोह के वातावरण में भिक्षु स्वामी ने संवत् १८१६ का जोधपुर चातुर्मास संपन्न कर, बगड़ी गांव में आचार्य रुघनाथजी महाराज के दर्शन किए। भिक्षु स्वामी ने कुछ समय औपचारिकता का निर्वाह करके, फिर अपने विचार, गुरु महाराज के १. रुघनाथ चरित्र : मुनि मिश्रीमल के आधार पर तथ्यात्मक विश्लेषण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy