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________________ परिशिष्ट १७६ न करे तथा उपशान्त कलह की उदीरणा न करे इसलिए भिक्षु स्वामी ने कहा, गण किसी साधु-सव के प्रति अनास्था उपजे, शंका उपजे वैसी बात करने का त्याग है, किसी में दोष देखे तो तत्काल उसे जता दे तथा आचार्य को जता दे किन्तु उसका प्रचार न करे । दोषों को चुन-चुनकर इकट्ठा न करे । जो जान पड़े उसे अवसर देखकर तुरंत जता दे। वह प्रायश्चित का भागी है, जो बहुत समय बाद दोष बताए ।' विनीत - अवनीत की चौपाई में उन्होंने कहा है 1 1 " दोष देखे किणही साध में, तो कह देणो तिण ने एकन्तो रे । जोमाने नहीं तो कहणो गुरु कने, ते श्रावक छै बुद्धिवन्तो रे ॥ सुविनीत श्रावक हवा ॥१॥ प्रायश्चित दिराय ने शुद्ध करे, पिण न कहे अवरां पासो रे । ते श्रावक गिरवा गंभीर है, श्री वीर बखाण्या तासो रे || सुविनीत श्रावक एहवा ॥२॥ तो कहे नहीं, उणरा गुरुने पिण न कहे जायो रे । और लोकों आगे बकतो फिरे, तिणरी प्रतीत किण विध आयो रे ।। अविनीत श्रावक एहवा ॥३॥ तथा किसी साधु-साध्वी को जाति आदि को लेकर ओछी जबान न कहे । आपस में मन मुटाव हो वैसा शब्द न बोले, एक दूसरे में संदेह उत्पन्न न करे । तथा गण और गणी की गुण रूप वार्ता करे । कोई गण तथा गणी की उतरती बात करे, उसे रोक दे और वह जो कहे, उसे आचार्य को जता दे। कोई उतरती बात करता है और उसे कोई सुनता है, वे दोनों अविनीत हैं । विनीत वह होता है. जो आज्ञा को सर्वोपरि माने । जिन शासन में आज्ञा बड़ी, आतो बांधी रे भगवंतो पाल । सहु सज्जन असज्जन भेला रहे, छांदो रुंधे रे प्रभु वचन संभाल ॥ बुद्धिवंता एकल संगत न कीजिए । छांदो यो पिण संजम निपजे, तो कुण चाले रे पर की आज्ञामांय । सहु आप मते हुए एकला, खिण भेला रे खिण बिखर जाय || भगवान ने कहा है 'चइज्ज देहे न हु धम्मसासणं' मुनि शरीर छोड़ दे, किन्तु धर्म शासन को न छोड़े। जयाचार्य ने उसे पुष्ट करते लिखा है 'नंदन वन भिक्षु गण में बसोरी, हे जी प्राण जाय तो पग में खिसौरी ॥१॥ गण मोहे ज्ञान ध्यान शोभेरी, हे जी दीपक मंदिर मांहे जिसोरी ॥२॥ टालोकर नों भणवो न शोभैरी, हे जी नाक बिना भोतो मुखड़ो जिसोरी ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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