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________________ नवयुग का उदय व विकास १३१ दायित्व निभाने की प्रार्थना करने को कहा । मंत्री मुनि आचार्यप्रवर के पास गए। आचार्यवर सारी स्थिति को भांप चुके थे अतः आपने कहा, 'मैं स्वयं महसूस करता हूं कि निर्णायक घड़ी आ गई है। मैंने सोचा था कि बीदासर जाकर साठ वर्ष पूर्ण होने पर मातुश्री छोगोंजी के समक्ष अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति करूंगा पर आज तक मेरे सब मनोरथ फलने पर भी यह मनोरथ पूरा नहीं हो सकेगा, मुझे अब अनुभव हो गया है कि मेरा शरीर अब अधिक दिन नहीं रहेगा और मैं आपसे सहमत हूं कि सघ-हित के लिए भावी प्रबन्ध कर देना चाहिए। मैं माणकगणि की घटना की पुनरावृत्ति कर संघ को फिर कसौटी में झोंकना नहीं चाहता।' मंत्री मुनि एवं संत आश्वस्त हो गए। मंत्री मुनि ने आपसे पूछा, 'कैसे ? कब ? और किसे? इस पर अपना अभिमत दें ताकि उसके अनुरूप व्यवस्था हो सके।' आपने कहा, 'मैं गुप्त रूप से उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं करना चाहता, जो कुछ करूंगा, स्पष्ट रूप से जनता के सामने करूंगा। इसमें अब विलंब करना नहीं चाहता। कल एकादशी को ही यह कार्य कर सकता हूं। जहां तक किसका सम्बन्ध है, यह आपसे छिपा नहीं है। पर मन में एक कठिनाई उत्पन्न हो रही है कि तुलसी अवस्था में छोटा है।' मंत्री मुनि ने कहा, 'कोई बड़ी अवस्था का ध्यान में हो तो देख लें।' आपने त्वरित कहा, 'इसका तो प्रश्न ही नहीं उठता। तुलसी की छोटी आयु में उसे सम्मानित कर आचार्य पद की गरिमा बढ़ाना व समय पड़ने पर परामर्श देकर शासन भार निभाने की क्षमता में अभिवृद्धि करना अब आपके भरोसे है, आप आश्वस्त करें तो सब कुछ अच्छा हो जाएगा।' मंत्री मुनि अपने प्रति ऐसे उद्गार सुनकर भाव-विभोर हो गए, एक नये युग के सूत्रपात्र से वे सिहर उठे, पर अब सोचने का समय तो रह ही नहीं गया था, उन्होंने पूर्ण रूप से आश्वस्त करते कहा, 'तुलसी पुण्यवान, निपुण एवं भविष्यद्रष्टा है, उसके बारे में आप कोई विचार न करें, मैं जैसा आपके लिए समर्पित रहा हूं, वैसा ही इसके लिए रहूंगा व संघ हित में ही यह जीवन खपेगा। उत्तराधिकारी की नियुक्ति के लिए भादवा सुदी ३ का मुहूर्त श्रेष्ठ है, अतः उसी दिन यह कार्य सम्पन्न होगा।" आचार्यवर निश्चिन्त हो गए पर शारीरिक स्थिति देखकर उन्हें तीज दिन का समय कुछ लम्बा लगा पर. मन्त्री मुनि ने इस दृढ़ विश्वास पर कि आपका संकल्प कभी अधूरा नहीं रहा है और यह कार्य भी ठीक समय पर ही होगा, आप तीज के दिन यह कार्य करने को सहमत हो गए । उसकी पूर्व भूमिका के रूप में भादवा वदि ३० के मध्याह्न विजय मुहूर्त में, सवा ग्यारह बजे मुनि तुलसी को जल्दी आहार कराकर मुनिश्री चंपालालजी आचार्यवर के संकेत से उनके पास ले गए और गुरु-शिष्य के मध्य एकांत में वार्ता १. महामनस्वी कालगणि : आचार्यश्री तुलसी पृष्ठ संख्या १३५ में वर्णित तथ्य व 'आश्वस्त' भाव के माधार पर विवेचन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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