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________________ सप्तमाचार्य श्रीमद् डालगणि (संवत् १९५४ से १९६६) विशिष्टता आप तेरापंथ के एकमात्र ऐसे आचार्य हैं, जिन्हें गुरु की कृपा के कारण आचार्यत्व पद प्राप्त नहीं हुआ बल्कि जो मात्र अपने पुरुषार्थ के कारण, तत्कालीन परिस्थितियों में प्रखर अनुशास्ता की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते, सारे संघ के सर्वमान्य आचार्य निर्वाचित हुए। यह सचमुच आश्चर्य का विषय है कि आपकी प्रखरता व तेजस्विता प्रारम्भ से ही मुखरित होने तथा श्रीमद् माणक गणि से आयु एवं दीक्षा पर्याय में बड़े होने पर भी पूर्वाचार्यों की दृष्टि शासन-भार संभालने के लिए आप पर न टिक सकी और मात्र पांच वर्ष में ही सारे संघ को इस पद को संभालने के लिए आपका ही विकल्प रह गया। जन्म एवं वंश-परिचय आपका जन्म संवत् १९०६ के अषाढ़ शुक्ला ४ को मालवा प्रदेश की प्राचीन राजधानी तथा भारत के सांस्कृतिक नगर उज्जैन में श्री कनीरामजी पीपाड़ा और उनकी धर्मपत्नी जड़ावोंजी के घर हुआ। आपकी छोटी अवस्था में आपके पिता का देहान्त हो गया, उससे आपकी माता का मन संसार से विरक्त हो गया। आपकी मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में, उन्होंने अपने परिजनों की अनुमति लेकर, आपकी सार संभाल उन्हें संभलाकर, संवत् १६२० अषाढ़ सुदि १३ को पेटलाबाद में साध्वी श्री गोमांजी के पास दीक्षा ले ली। माता की दीक्षा के बाद आपके हृदय में धार्मिक भावना जगी, तीन वर्ष पश्चात् इन्दौर में पावस प्रवास में बिराजे हए मुनिश्री हीरालालजी के पास जाकर, आपने तत्त्व-ज्ञान सीखा। संवत् १९२३ भादवा वदि १२ को उनके पास दीक्षा स्वीकार ली। मुनिश्री ने आपको थली प्रदेश पधारकर श्रीमद् जयाचार्य को सौंप दिया। एक साल (संवत् १९२४) मुनिश्री के साथ जयपुर चातुर्मास कर फिर चार वर्ष (१९२५ से २८) तक आपने श्रीमद् १. तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर मेरा अभिमत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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