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________________ छठे आचार्य श्रीमद् माणकगणि ६. की आयु का योग, आपको लगता था, अतः आपको यह बीमारी खतरनाक नहीं लगी और आपने किसी के निवेदन पर ध्यान नहीं दिया। चाहते तो गुप्त रूप से किसी के नाम नियुक्ति-पत्र लिख देते तथा स्वस्थ होने पर उसे फाड़ देते व किसी को उसका पता भी नहीं लगता पर भावी को टालना किसी के बलबूते की बात नहीं है और इसलिए आपको किसी की बात जंची नहीं। आसोज का पूरा महीना रुग्णावस्था में बीता, शरीर धीरे-धीरे अशक्त हो गया। कार्तिक वदि ३ को प्रातःकाल ऐसा दस्त लगा कि आप मूच्छित हो गए । रात को ग्यारह बजे मूर्छावस्था में ही तीन हिचकियों के साथ आपके प्राण-पखेरू उड़ गये। सारे संघ में असमय में आचार्यप्रवर के देहावसान से शोक छा गया तथा भावी आचार्य के मनोनयन के अभाव में जबरदस्त चिन्ता हो गई। तेरापंथ की सारी व्यवस्था ही आचार्य केन्द्रित है, उनके केन्द्र की धुरी टूट जाए तब व्यवस्था का डगमगाना सहज है और यही स्थिति सारे संघ की बन गई । तेरापंथ के लिए एक साहस भरी चुनौती सामने आई पर संघ के अनुशासित एवं मर्यादा निष्ठ, नीतिवान् साधु-साध्वियों ने उसका अत्यन्त सुन्दर ढंग से मुकाबला कर समाधान निकाला जिसका विवरण हम आगे के पृष्ठों में पढ़ेंगे । श्रीमद् माणकगणि के यकायक देहावसान से लगता है कि एक सुन्दर सुरम्य सुवासित सुमन अधखिला ही मुरझा गया, काल की प्रचण्ड आंधी ने उसे डाल से नीचे पटक दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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