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________________ 140 जैनधर्म की वैज्ञानिक आधारशिला 3. चरणानुयोग : (साधु एवं गृहस्थ के चरित्र का अनुयोग) : यह जैन योग या आचार से सम्बन्धित सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अनुयोग है। इसके अंतर्गत आचार्य हेमचंद्र का योगशास्त्र, (12वीं. सदी) और हरिभद्र का योगबिंदु (आठवीं सदी) के समान ग्रंथ समाहित होते हैं। 4. द्रव्यानुयोग : (तत्त्व, अस्तिकाय या द्रव्यों का अनुयोग) : इसमें जैन मान्यता के अनुसार विश्व में मान्य भौतिक जगत् के छह द्रव्य एवं आध्यात्मिक जगत के नव तत्त्व आदि का वर्णन किया जाता है। इस वर्ग का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ उमास्वाति का तत्त्वार्थसूत्र (द्वितीय सदी) है। इस ग्रंथ मे लगभग 350 सूत्रों में जैनों की समस्त सैद्धान्तिक मान्यताओं का संक्षेपण किया गया है। इसकी पंतजलि के योगसूत्र से तुलना की जा सकती है क्योंकि इसमें एक विशिष्ट दर्शन-तंत्र के उपदेशों को समेकीकृत रूप में दिया गया है। इस कोटि के अन्य ग्रंथों में आचार्य सिद्धसेन के न्यायावतार और सन्मतिसूत्र (पांचवीं सदी) नामक ग्रंथ भी समाहित हैं जो न्यायशास्त्र के उत्तम ग्रंथ हैं। मुनि यशोविजय आधुनिक न्यायशास्त्र के प्रतिनिधि हैं। हमारा उपरोक्त विवेचन प्रायः श्वेताम्बर साहित्य तक सीमित है। दिगम्बर भी उपरोक्त 60 ग्रंथों में विश्वास करते हैं, लेकिन वे सभी (स्मृति में) लुप्त हो गये हैं। फिर भी उनके पास कुछ ऐसे अभिलेख हैं जिनके आधार पर दूसरी सदी के लगभग दो आगम-तुल्य ग्रंथ-षट्खंडागम (छह-खंडी आगम) और कषायपाहुड (कषायों का उपहार) लिखे गये हैं। इसके अतिरिक्त कुंदकुंद (संभवतः द्वितीय सदी) के ग्रंथ भी सर्वाधिक बोधगम्य हैं। इन ग्रंथों में समयसार, नियमसार, प्रवचनसार और पंचास्तिकाय मुख्य हैं। उनकी परम्परा पूज्यपाद ने छठी सदी में भी जारी रखी। समयसार की महत्त्वपूर्ण आत्मख्याति टीका आचार्य अमृतचंद्र ने ग्यारहवीं सदी में लिखी थी। अन्य उल्लेखनीय आचार्यों में जिनसेन (नवमी सदी) और सोमदेव के नाम लिये जा सकते हैं। उमास्वाति के 'तत्त्वार्थसूत्र' के उपर्युक्त रूपांतर और अकलंक, विद्यानंद और सिद्धसेन के ग्रंथ दोनों सम्प्रदायों द्वारा मान्य किये जाते हैं। इस विषय में विशेष विवरण के लिये पी. एस. जैनी (1979) की पुस्तक देखिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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