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परिशिष्ट 2: जैन आगम ग्रंथ
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प्रथम वर्ग के आगम ग्रंथ (अंग ग्रंथ) अर्धमागधी भाषा में लिखे गये थे, जो मगध की प्राकृत की एक बोली या उपभाषा ही थी । उमास्वाति और उसके उत्तरवर्ती ग्रंथ तो संस्कृत में लिखे गये। इस प्रकार, जैनों का विशाल • साहित्य उपलब्ध है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र को धर्म से सम्बन्धित दार्शनिक पुस्तकों में मुख्य माना जा सकता है और इसे सभी जैन एक प्रामाणिक पुस्तक मानते हैं। यहां यह ध्यान में रखना चाहिये कि दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परा के जैन आगमों के सार के रूप में 'समणसुत्तं' नामक पुस्तक प्रकाशित हुई है जिसमें 756 गाथायें हैं । यह महावीर के 2500 वें निर्वाण महोत्सव पर सर्वसेवा संघ, राजघाट, वाराणसी से प्रकाशित हुई है। 1993 में इस पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण भी प्रकाशित हुआ है । इस पुस्तक के अंत में दी गई संदर्भ ग्रंथ सूची का खंड 'अ' कुछ प्रमुख मूल ग्रंथ और उनके अनुवादों का निर्देश करता है ।
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