SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४ are शस्त्र है । सरल जीवन जीने का सरलतम उपाय यदि कोई है तो वह सत्यमय जीवन बनाने की क्रिया है । अचौर्याणुव्रत : कहा गया है कि एक मूल के साधन से सभी कुछ सध जाता है उसी प्रकार यह भी कह सकते हैं कि मूल के दूषित होने से सभी कुछ दूषित हो जाता है । यों कहना यथार्थ होगा कि अहिंसा द्वारा जिसने क्षमा करुणा धारण की उसका सत्य प्रकाशित होता है । bfक्त सरल, निष्कपट, निर्भय एवं प्रसन्नचित वनता है । उसमें समता का जागरण होता है इन देवगुणों से उसमें जैसे संतोष का स्रोत प्रवाहित होने लगता है । इस संतोष के स्त्रोत को अधिक वेगवान एव' पल्लवित बनाने के लिए इस अचौर्याणुव्रत का, स्वीकार एव विकास आवश्यक है । व्यक्ति में भौतिक सुखों की लालसा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा है | वह वर्तमान साधनों से जब उसकी पूर्ति नहीं कर पाता तब वह अन्य अनपेक्षित मार्गों का आश्रय लेने लगता है । धन की वृद्धि के लिए वह रिश्वत लेता है, कम तौलता है, संग्रह करता हैं मिलावट एव काला बाजार के कार्य करता है । दूसरे वे लोग हैं जो अभावों की पूर्ति के लिए छोटी-मोटी, चोरी जेब काटना आदि कर्म करते हैं । यही धीरे धीरे आदत बनती जाती है जो बडे-बडे डाके डलवाती है । चाहे आवश्यकता की पूर्ति के हेतु है। या धनवान बन कर ऐशो आराम करने की भावना से हों - ऐसे कृत्य चोरी के हैं । इस कार्य का मन में विचार आते ही मनोभाव कलुषित होने लगते हैं । मानसिक शांति का हरण हो जाता है । नैतिक पतन होने लगता है । हमारे मन में अन्य का अहित भाव जागने से हिंसा की वृति जन्मती है । बस ! हिंसा का भाव जागृत होते ही सारी बुराइयाँ अंकुरित होने लगती हैं । छूठ का आश्रय ही चौर्य कर्म का सबसे बड़ा साथी बन जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003666
Book TitleJain Dharm Siddhant aur Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherSamanvay Prakashak
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy