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है। जबकि अमत्यवक्ता एक साथ को पाने के लिए असली की पर परा खेड़ी करता है । सदैव भयभीत एवं चिंतातुर रहती है। वह निरंतर असत्य के कीचड़ में धसता जाता है । असत्य धक्तो अहवादी कंपटी होगा । स्वार्थ ही उसका सर्वस्व गा । ऐसा आदमी जो स्वार्थ के लिए झूठ बोल कर पहाड से प प को बांधत्ता है। कुछ लोगों की ऐसी भ्रमणा या अँसस्य मान्यता है कि अंसात्य बलि बिना धंधा कैसे चलेगा ? समृद्धि के लिए पैसा झूठ से ही माया जा सकता है...वगैरह...वगैरह । यद्यपि वर्तमान राजनीति से, अधिकारिओं में व्याप्त भ्रष्टाचार धूरा आदि के कारण व्यापारी वर्ग परेशान है । पर, उसको समाधान असत्य नहीं पर निर्मयत) से सामना करना है । ऐसा देखा गया है कि सत्य बोलकर प्रमाणिबैतां से व्यापार करने वाला प्रारभ में कुछ कम कमाने पाता है। पर, कालांतर में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है । लोग उस पर विश्वास करते हैं । उसकी ब्यापार बढ़ता है। आय बढ़ती है । उसे मान सिक शांति मिलती है और समृद्धि भी।
असंत्य में मिथ्या उपदेश की भी समावेश हो जाता है। अर्थात शस्त्रोक्तवचन से विरुजू बोलना, किसी की गुप्त बात प्रका करना; किसी के विषय में गलत लेख लिखना, झूठी गवाही देना एव किसी की रहस्य अन्य पर मकैट करना आदि मू के ही अंग हैं । सत्य वक्ता की सर्व प्रथम क्रोध, लोम एव भय का त्याग करना होता है । वह किसी की हँसी ठड्डा नहीं करता । उसके कृत से या कथन से किसी के हृदय को ठेस भी पहुँचे ऐसे वचन व कार्य से वह सर्वथा दूर रहता है।
सच तो यह है कि यदि व्यक्ति में सत्य का स्थान बढ़े तो समाज व देश उन्नति कर सकता है । ये अहिंसा की तरह ही
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