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________________ जिसमें क्षमा के साथ बढ़ता, अनाक्रम ग के साथ अन्यायी, के प्रति प्रतिकार की शक्ति है वही जैन है । आज भी प्रश्नचिन्ह लगा हुआ हैं कि अपरिग्रह के अनुयायी गया अपरिग्नही हैं ? जया जैनत्व का निर्धार हमारे आचरण में है । आवश्यक है कि हम भौतिक आन द से बाहर निकल कर आत्मशक्ति के साथ विश्वशक्ति की ओर अग्रसर हां। तभी सच्चे मैन कहलाने के अधिकारी हैं। जैन धर्म में भगवान ; भारतवर्ष में अनेक सम्प्रदाय विविध वैमनस्य के कारण जन्न । भगवान, उसके अस्तित्व आदि को लेकर वाद-विवाद चल रहे । जैन धर्म के प्रचार-प्रसार एव उसकी स्पष्ट नीनियों के कारण द्वेष वश उसे सिर्फ इस आधार पर नास्तिक धर्म कह दिया गया कि वह वेदों को नहीं मानता । अवतार को स्वीकार नहीं करने के कारण उसे न जाने किन-किन द्वेषपूर्ण विशेषणों का शिकार बनना पड़ा । यद्यपि इन विधानों में एकांगी द्वाही अधिक था कोई तार्किक या प्रामाणिक सत्य नहीं था । - हिन्दु धर्म की मान्यता है कि ब्रह्मा संसार का सृष्टा है । और एक दिन सारा संसार प्रला की गोद में समा जाता है । भगवान अवतार लेता है । वह लीलायें या चमत्कार करता है, और पश्चात अपने नियत धाम में चला जाता है । वह राग-द्वेष भाव को धारण कर सकता । जैन धर्म सर्व प्रथम तो सृष्टि का कर्ता किसी व्यक्ति विशेषको नहीं मानता साथ ही अवतारवाद का स्वीकार नहीं करता । जैनधर्म में प्राणी मात्र समान है । संसार का प्रत्येक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003666
Book TitleJain Dharm Siddhant aur Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherSamanvay Prakashak
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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