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सहे । मन वचन-कार्य से अहिंसा का पालन किया । प्राणीमात्र के अंतर को कष्ट न पहुँचे इसका ध्यान रखा | उपसर्गों को स्वस्थ चित्त से सहन किया । शरीर का मोह त्यागकर आत्मा का प्रकाश बढ़ाया । ऐसे वीरव्रतधारी तीर्थकरों द्वारा स्थापित या प्रणीत यह जैन धर्म अहिंसा की नींव पर खडा हुआ हिंसा-क्रोध आदि आत्मा के विपरीत तत्वां पर क्षमा से विजय प्राप्त की । नाश करने की शक्ति होते हुए भी निर्माण को ही जीवन का मत्र बनाया । सच मी है आमा कभी कायरों का साधन बन ही नहीं सकता । उसका प्रयोग क्षत्रिय या बहादुर ही कर सकता है । इसी लिए क्षमा वीरस्य भूषणम् कहा गया गया है | अहीसा जीवन का एक अंगभूत तत्व बन गया । दृश्य तो ठीक, मानसिक कुविचार हिंसा के अन्तर्गत माने गये । अहिंसा के इस जीवन ध्येय के कारण क्षमा एव अहित नहीं करने का भाव रक्त के कण-कण में व्याप्त हो गया सहन शक्ति का विकास हुआ इस सिद्धांत को अपनाने वालों ने आजीविका के साधन ही ऐसे चुने जिनमें कम से कम हिंसा हो । प्रमादवश हिंसा न हो । अधिकांश ने व्यापार को महत्व दिया । धीरे-धीरे 'क्षमा वीरों का आभूषण' तो लुप्त होता गया वह डर का प्रतीक बनता गया । आत्मरक्षण में भी इतने अहिंसक बन गये कि प्रतिकारक भाव ही मर गया । दूसरे शब्दों में महान धर्म या सिहधर्म वणिकों के हाथ पड गया । क्षात्रवृत्ति वणिक में बदल गई । पैसे की लालच बढ़ी जिससे पैसे के लिए सब कुछ सहन करने की आदत बन गई । वही कमजोरी हमारा लक्षण बन गया है। सच तो यह है कि हम जैन धर्म के अनुयायी है। हम हिंसा न करें पर आतताइयों को भी सहन न करें कमी हड़ना मनानी चाहिए।
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