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________________ ११९ लीन हो गये थे । अपनी श्वास और नाडीतंत्र पर उनका प्रभाव था । दर्शन करते समय हमें यही सीखना है कि हे देव ! जैसे तुमने इस अलौकिक शक्ति को प्राप्त किया था मैं भी उसी के प्राप्त करने को सक्षम बनूं | जैसे आत्मा को जानने के लिए तुमने संसार को त्यागा - मै भी वैसे ही प्रगति करूँ । मुझमें कष्ट सहने की शक्ति बढ़े समता बढे मेरी लेोकेषणा शांत हो । यदि हम दर्शन करते समय यह मांगते हैं तो हमारी माँग भी योग्य है और दर्शन करने का महत्त्व भी है । अन्यथा दिखावा है । दर्शनमंत्र : - (मोकार मंत्र) जैना का महामंत्र ' णमोकार मंत्र' विश्व व्यापी या बह्मांड के प्राणी मात्र के लिए उपयोगी है | यद्यपि आज यह जैनों का मंत्र बन गया है- -पर इसको समझने पर लगेगा कि यह मंत्र उस हर प्राणी का है जो आत्मकल्याणकारी मार्ग पर आरुढ़ होना चाहता है । नमस्कार व्यक्ति को नहीं - शक्ति का, ज्ञान का किया गया हैं । णमो अरि ( अर) हंताणं | णमो सिद्धाणं । णमो आयरियाणं । णमो उवज्झायाणं । णमो लोए सव्व साहूणं । प्रथम पद में हमने उन्हें नमस्कार किया हैं जिन्होंने अपने 'अरि, दुश्मनों का विनाश किया है | यहाँ दुश्मन और विनाश शब्द संसार को अपेक्षा से नहीं है । अन्यथा वह व्यक्ति नमस्कार का अधिकारी हो जायेगा जिसके हाथ में लाठी होगी । यहाँ दुश्मन हैं:- आत्मा के साथ अनंत युगों से चिपके हुए क्रोध-मानमाया लाभ आदि कषाय । द्वेष और राग आदि भाव । ये सब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003666
Book TitleJain Dharm Siddhant aur Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherSamanvay Prakashak
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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