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________________ प्रास प्रमाण ज्ञात होता है कि लौंकाशाह जैनसाधु और जैन श्रागम किन्हीं को भी बिलकुल नहीं मानता था यही क्यों पर वह तो जैनधर्म की मुख्य क्रिया-सामायिक, पोसह, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान दान और देवपूजा को भी मानने से इन्कार था । इस विषय में आज तक जो साहित्य उपलब्ध हुआ है, उसकी सची पाठकों के अवलोकनार्थ हम नीच दे देते हैं:नं० ग्रंथ का नाम कर्ता का नाम संवत् सिद्धान्त चौपाई पं० मुनिश्री लावण्य समय वि० सं० १५४३ सिद्धान्तसार चौपाई | उपाध्याय कमलसंयम | वि० सं० १५४४ उत्सूत्र निवारण छत्तीसी मुनि वीका वि० सं० १५४४ ४ दयाधर्म चौपाई लौंकागच्छीय यति । भानुचन्द्र वि. सं. १५७८ तरण तारण श्रावकाचार दि० तारण स्वामी वि० सं० १६वीं श.. भद्रबाहु चरित्र | दि. रत्नानंदी वि० सं० १६वीं श.. कुमतिध्वंस चौपाई पं. हीर कलस वि० सं० १६१० लुंपक निराकरण चौपाई दि० सुमति कीर्ति वि० सं० १६२७ लौकाशाह जीवन तपागच्छोय कान्ति विजय वि० सं० १६३६ तपागच्छीय पटावली | उ. धर्मसागरजी वि० सं० १९४८ लौंका सिलोको | लौंका० यति केशवजी वि० सं० १७वीं श" १२ कडुभामत पटावली | सं० श्रा० कल्याणजी वि० सं० १६८४ १३) कवितामय जीवन रूपचन्द वि० सं० १६९९ १४ सिद्धान्त चौपाई पं० गुणविनय वि० सं० १७वीं श. - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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