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प्रकरण - चौथा
afकाशाह विषयक प्राप्त प्रमाण ।
लौं
काशाह के जीवन इतिहास के विषय में लौंकागच्छीय श्रीपूज्य व यतिवर्ग के पास अनेक पटावलियें आदि आज भी विद्यमान हैं, पर वे स्थानकमार्गियों को रुचिकर नहीं है, कारण ! उन पटावलियों में न तो दिन भर मुँहपत्ती बाँधने का निर्देश है और न आज तक भी उनके अनुयायी बाँधते हैं । इतना ही नहीं पर लौंकाशाह की मान्यता के एवं परम्पराऽऽगत श्राचार व्यवहार के विरुद्ध चलने के कारण श्रीमान् धर्मसिंहजी लवजी नामक यतियों को गच्छ के बाहिर करने का भी उल्लेख किया हुआ है, इसी अपमान के कारण इन दोनों महाशयों ने " ढूंढिया" नामक नया मत निकाला था, इसका भी वर्णन इन पटावलियों में अंकित है । इस हालत में स्थानक - मार्गी समाज को अपने पूर्वजों की सत्यस्थिति ( निंदा) बताने वाली पटावलियें कब अभीष्ट हो सकती है ? और वे कब उन्हें ( पटावलियों को ) प्रमाणिक मानने को तैयार हैं ।
परन्तु फिर भी लौंकाशाह की पाट परम्परा मिलाने के लिये थोड़ा बहुत संबंध व नामावली उन पटावलियों से लिए बिना काम नहीं चल सकता, अतः लौकागच्छ की पटावलियों को प्रामाणिक मानते हुए भी जहाँ अपना काम रुक जाता है वहाँ उनकी शरण लेनी ही पड़ती है । स्थानक मार्गियों का जो कुछ
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