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प्रकरण तीसरा
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इस विषय का उपालंभ हम जैन इतिहास-कारों को ही नहीं किन्तु जैनेतर सहृदय अन्यान्य इतिहासकारों को दिये बिना भी नहीं रह सकते । क्योंकि आपके इतिहासों में जब महात्मा कबीर नानक, रामचरण, नरसिंह मेहता, मीराबाई आदि को भी जब स्थान मिला है तो लौकाशाह जैसे प्रबल सुधारक (1) को स्थान नहीं मिलना क्या यह एक परिताप का हेतु नहीं है ?
वस्तुतः यह ग़लती इतिहासकारों की नहीं किंतु स्थानकमार्गियों की यह एक स्वप्नवत् कल्पना है कि लौंकाशाह एक नामांकित पुरुष हुए हैं, पर ऐसा कोई प्रमाण नहीं है । स्थानकमागियों के साहित्य में तो लौकाशाह का अस्तित्व तक भी नहीं है। उनको तो प्रत्युत पं० लावण्यसमयजी और उपा० कमलसंयमजी का महान् उपकार मानना चाहिए, जिन्होंने कि स्वरचित ग्रन्थों में नामोल्लेखकर लौकाशाह का अस्तित्व स्थिर रक्खा है। अन्यथा लौकाशाह का कोई नाम निशान ही नहीं था कि लौकाशाह नाम का भी कोई व्यक्ति संसार में प्रकट हुआ है। __अब हम यह दिखाना चाहते हैं कि लौकाशाह से संबन्ध रखने वाले कौन २ प्रमाण उपलब्ध हैं जिनसे हमें इनके अस्तित्व का पता मिल सके ? इन्हें पाठक अगले प्रकरण में पढ़ें।
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