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० अभाव क्यों ?
मुहता तेजसिंह, सबलसिंह, मंत्री यशोधवल, मुहणोत नैणसी, खेतसी, जेतसी, देशलशाह, सारंगशाह, समराशाह, थेरुशाह, पेथदशाह, पुनदशाह, भैंसाशाह, चोपाशाह, लुनाशाह, खेमाशाह, दयालशाह, नांनगशाह, रामाशाह, भैंरूशाह कोरपाल, सोनपाल, भामाशाह, सोजत के वैद मुहता, जोधपुर के सिंघी, भंडारी, मुर्शिदाबाद के जगत सेठ, अहमदाबाद के नगर सेठ, और टीलावाणिश्रा, आदि अनेक महापुरुषों के इतिहास विद्यमान है। इतना ही नहीं, किन्तु सोलहवीं शताब्दी के इतिहास से जैन साहित्य श्रोतप्रोत भरा पड़ा है, फिर केवल एक लौंकाशाह के विषय में ही यह क्यों कहा जाय कि हमारे में इतिहास-लेखनप्रथा नहीं थी, लौकाशाह के समकालीन एक कडुआ शाह भी हुए । उन्होंने भी काशाह की भाँति ही अपने नाम पर एक पृथक कडुआमत निकाला था, उनका तो इतिहास मिलता है, फिर लोकाशाह का ही इतिहास न मिले इसमें क्या कारण है । यदि कोई साधारण व्यक्ति हो, उसका तो इतिहास शायद चूहों के बिल की शरण ले सकता है, परन्तु स्थानकवासियों की मान्यतानुसार सात करोड़ जैनों से टक्कर लेने वाले, महान् क्रान्तिकारक, अपने नाम से नया भत निकाल, एकाध वर्ष में ही बिना वैज्ञानिक सहायता के, उसे भारत के इस छोर से उस छोर तक फैलाने वाले, लाखों चैत्यवासियों से मंदिर मूर्ति-पूजा छुड़ाके उन्हें अपने नव प्रचलित धर्म में दीक्षित करने वाले, स्वनाम धन्य लौकाशाह का इतिहास किस गुफा में गुप्त रह गया, अरे इतिहास तो दर किनार रहा, उनके गाँव घर, जन्मस्थान, और जन्मतिथि तक का हाथ न लगना, यह स्थान कमार्गियों के लिए कम दुःख और कम शरम की बात नहीं है ?
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