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प्रकरण तीसरा
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में असंभव गप्पें मार कर अपने दूसरे महाप्रत ( सत्य भाषण) का कैसे रक्षण किया होगा ? यह समझ में नहीं आता। अन्व में हम यह पूछना चाहते हैं कि इस २० वीं सदी में ये ऐसे कल्पित कलेवरों की आप लोग कितनी कीमत कराना चाहते हैं ?
लौकाशाह का जीवन लिखने वाले जितने स्थानक मार्गी हैं वे अपना २ बचाव करने के लिए प्रायः यह लिख देते हैं कि जैनों में इतिहास लिखने की प्रथा थी ही नहीं, या थी तो बहुत कम, इसलिए लौकाशाह के विषय में इतिहास नहीं मिलता है। पर हम आप से यह पूछते हैं कि जब लौकाशाह का इतिहास मिलता ही नहीं है तो, फिर आपने लौकाशाह का जीवन किस आधार पर लिखा है। जैसे लोकाशाह का जन्म सं० १४८२ काति सुदि १५ को, लौकाशाह की दीक्षा वि० १५०९ श्रावण सुदि ११ को, इत्यादि फिर वे कहाँ से लिख मारा है, क्या आपने ये सब मनगढन्त ही लिखे हैं ।
- जैनों में इतिहास लिखने की प्रथा थी ही नहीं, यह लिखना तो केवल अपना बचाव करना है। लौकाशाह को तो हुए आज केवल ४५० वर्ष हुए हैं परन्तु जैन साहित्य में हजार वर्ष से अधिक पूर्व का तो विस्तार से लिखा हुआ इतिहास प्राप्त है। पूर्वकालीन प्राप्त इतिहास केवल बड़े २ जैन धर्माऽवलम्बी राजाओं तथा जैन धर्म के प्राचार्यों का ही नहीं है, अपितु जैन धर्म में श्रद्धालु, जैन सद्गृहस्थों का इतिहास भी पर्याप्त संख्या में उपलब्ध है। जैसे कि-"मंत्री विमल, उदायण, बाहड़, सान्तु महता, मुंजल मंत्री, महामात्य वस्तुपाल तेजपाल, जगडुशाह त्रिभुवनसिंह, संप्रामसोनी राजसिंह, सोमाशाह मंत्री नारायण, कौशाह
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