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प्रकरण तीसरा
स्थानकमार्गियों के पास लौकाशाह के जीवन विषयक
प्रमाणों का प्रभाव क्यों हैं ?
लोकाशाह का इतिहास लोकाशाह के अनुयायी श्रीपूज्य
" व यति वर्ग के पास से ही मिल सकता है, नकि स्थानकमार्गियों के पास से। क्योंकि लौकाशाह के अनुयायियों और स्थानकमार्गियों के श्रादि पुरुषों के आपस में बड़ी भयंकर शत्रुता चल रही थी । लौकागच्छ के श्रीपूज्योंने यति धर्मसिंहजी एवं लवजी को अयोग्य समझकर ही गच्छ से बाहर किया था । इसी अपमान से रुष्ट हो इन दोनों ने भगवान महावीर
और लौकागच्छ की आज्ञा को भंगकर कई मन कल्पित कल्पनाओं द्वारा अपना नया दूँढिया मत चलाया। परन्तु कलिकाल के कलुषित प्रभाव से उन दोनों की भी मान्यता एक न रह सकी, क्योंकि जब धर्मसिंहजी ने श्रावक के सामायिक आठ कोटि से होने की कल्पना की तो लवजी ने डोरा डाल मुँह पर मुँहपत्ती बाँधने की कल्पना कर डाली। इन नयी २ कल्पनाओं के कारण लौकाशाह के अनुयायियों और नूतन मत स्थापकों के परस्पर में वैमनस्य का होना स्वाभाविक था। अतः नूतन मत स्थापक, लौकाशाह के इतिहास की ओर क्यों ध्यान देते १ जैसे स्थानकमार्गियों में से स्वामी भीखमजी ने दया दान की उत्थापना कर तेरहपन्थी मत
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