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"प्रकरण दूसरा
१४
लौकाशाह के जन्म समय में १० वर्ष का अन्तर डालता हूँ जिससे कि कम से कम लौकाशाह और बादशाह का पारस्परिक मिलन तो होजाय ? क्या आप इस बात को स्वीकार कर लेंगे कि लौकाशाह का लग्न पाँच वर्ष और उसके पुत्र ८ वर्ष की वय में हुआ था ?
स्वामीजी ! भाप लौकाशाह को धनाढ्य, रोजकर्मचारी और यति से दीक्षित सिद्ध करने को दो पन्ने मुद्रित करा कर उलटे चकर में फंस गये । लौकाशाह की तमाम घटनामों के समय को बार बार बदलने की कोशिश करने पर भी संतबालजी आप से सहमत नहीं हैं। अतः सब से बहेतर तो यह है कि इस काल्पनिक मूल ढाँचे को ही बदल दिया जाय । ऐसा करने से आपके सिर पर आई हुई सब आपदाएं टल जायेंगी।
जरा आंखें मूंदकर विचार करें कि वि० सं० १६३६ का समय तो तपागच्छ और लौंकामत के बीच भीषण प्रतिद्वन्द्विता का था। क्योंकि पूज्य मेघजी श्रीपालजी आनंदजी श्रादि सेकड़ों साधुओं ने इसी समय लौकागच्छ का परित्याग कर जैन दीक्षा ली थी। उस समय ऐसा गया बीता तपागच्छ का यति कौन होगा कि लौंकाशाह की असम्बन्धित घटना अपने हाथ से लिख दे । शायद किसी पक्षान्ध व्यक्ति ने तपागच्छीय यति का नाम लिख इनकी रचना की हो तो भी यह कल्पनिक ही है। क्योंकि भाषा की दृष्टि से ये पत्र इतने प्राचीन सिद्ध नहीं होते हैं। पर हमारे स्थानकमार्गी भाईयों को भाषा का ज्ञान ही कहा है ? अतएव आज की सुधरी हुई भाषा में दो पन्ने लिख उन्हें ३५७ वर्ष के प्राचीन सिद्ध करने का मिथ्या प्रयत्न करते हैं, पर भाषा मर्मज्ञ स्वीकार करेंगे या नहीं ? इसकी आपको परवाह ही क्या है ?
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