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________________ १५ क्या त० ब० ली. वास्तव में ये दो पन्ने तपागच्छीय यति के तो क्या पर उस समय के लिखे हुए ही नहीं प्रतीत होते हैं बल्कि अर्वाचीन समय में किसी ने कल्पित बनाए हैं। और इस कल्पित मत में यही कल्पना पहिली वार ही नहीं पर आगे भी कई बार की गई हैं। उदाहरणार्थं लीजिए वि० सं० १८६५ में अहमदाबाद में तपागच्छय और स्थानकमार्गी ( ढूँढिये ) साधुत्रों में शास्त्रार्थ हुआ, उसमें स्थानकमार्गी हार गए तो स्वामी जेठमलजी ने तीन पानों के अन्दर एक "विवाह चूलिया सूत्र” के नाम पर नया पाठ बना कर अपने पक्ष की पुष्टि में प्रमाण दिया । पर जब उसकी परीक्षा हुई तो सारी सभा के समक्ष ही उन ३ पत्रों को जल देवता की शरण करना पड़ा । इसी भाँति स्थानक मार्गी साधु कुनणमलजी ने भी अपनी पुस्तक में कई एक नये कल्पित पाठ बना कर छपाये हैं, जिन्हें कई स्थानकमार्गी भी स्वयं कल्पित करार देते हैं । किंभंते । शिलावटाणं जिणपडिमाणं अम्मा पियारो हवइ x x x तिथ्थकरेणं अम्मापियारा वणइ वणवइ २ त्ता, अणुमोदइ २ ता किं फल Xx जिण सिद्धान्ताणं रोहणी ( लिलाम ) करइत्ता किंफल तिर्थकराण, x जिनमन्दिरेण x x पखालेण x x भिते पंचम काले सावज्जा चारेण संस्कृतेणं चत्तारेणं अँग भाषेइता xx परतिष्ठाणं x x यात्राणं x किंभंते । केवलीणं नाटक करे इत्ता सनमुखेण xx तिर्थकरेण गोत्रेणव x x संवेग ढ़ाणंभंते × × X इत्यादि ऐसे कई पाठ बनाके अपनी विद्वत्ता का परिचय दिया है परन्तु खास स्थानकवासी समाज ही इनका सख्त विरोध करता है और इन उत्सूत्रों को अनुमोदन करनेवालों को अनंत संसारी समझता है । 56 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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