________________
प्रकरण पहिला में रख कर वाद विवाद के पश्चात् सच्चे जीवन चरित्र को लिखे तो वह विद्वत्समाज में हँसी करानेवाला न होकर सर्व मान्य
और विश्वसनीय समझा जा सकता है। आशा है लौकाशाह के सच्चे जीवन के इच्छुक, स्थानक मार्गी समाज के विद्वान् लेखक व्यर्थ ही में आकाश पाताल एक न कर इस सार भरी सलाह पर ध्यान देंगे । जिस तरह स्थानकमार्गी समाज के विद्वान् आज तक भी लोकांशाह के प्रमाणिक जीवन को प्रकाशित नहीं करा सके हैं उसी तरह तपागच्छ वाले भी इस महत्व के विषय में मौनाऽवलम्बन धारण किये हुए हैं, अगले प्रकरण में हम उसी का विस्तृत विवेचन करते हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org