SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण-दूसरा क्या तपागच्छीय यतिजी ने लौंकाशाह का जीवन लिखा है ? स्था नकमार्गी साधु मणिलालजी ने हाल ही में "जैन धर्म नो संक्षिप्त प्राचीन इतिहास अने प्रभुवीर पटावली” नाम की एक पुस्तक मुद्रित कराई है । श्राप जब प्रस्तुत पुस्तक लिख रहे थे तब आपको डाक द्वारा किसी से प्रेषित " दो पन्ने" मिले, जैसे वाड़ीलाल मोतीलाल शाह को भी ऐतिहासिक aa लिखते समय डाक मिली थी । शायद उसका ही अनुकरण स्वामि मणिलालजी ने किया हो ? उन दो पन्नों में श्रीमान् लौंकाशाह का जीवन वृत्तान्त था, वह भी वि० सं० १६३६ में तपागच्छीय यति श्रीनायक विजय के शिष्य श्रीकान्तिविजय ने पाटण में लिखा था । उन पन्नों को 'स्वामीजी ने अपनी पुस्तक के पृष्ट १६१ में मुद्रित भी करवा दिया है । स्थानकमार्गियों के मतानुसार वे पन्ने ३५७ वर्ष के 'पुराने भी जरूर हैं। ये दोनों पन्ने तपागच्छ के यति कान्तिविजय ने लिखे हैं या किसी दूसरे ने ? इस पर तो हम आगे 'चल कर विचार करेंगे, परन्तु पहिले यह देखना है कि इन पन्नों में लिखा क्या है ? "अरहट वाड़ा, में हेमाभाई को भार्या गंगा की कुक्षि से वि० सं० १४८२ को एक पुत्र का जन्म हुआ, उसका नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy