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________________ लोकाशाह कौन थे विद्वानों को इससे थोड़ा भी संतोष नहीं हुआ, कारण उन्होंने उस समय अपने सरल किंतु सधे हृदय से यह लिख दिया कि लोकाशाह एक साधारण गृहस्थ और लिखाई का धंधा करता था, परन्तु आज के स्थानकमार्गी विद्वानों को तो अपने धर्म का श्राद्य संस्थापक धर्मगुरू, "धुरन्धर विद्वान् , अतिशय धनाढ्य, साहुकार, राजकर्मचारी, शास्त्र मर्मज्ञ, संयमी, मुनि, एवं आचार्य तथा मुँह पर मुँहपत्ती बाधने वाला और मूर्ति का कट्टर विरोधी" चाहिए । ऐसे सीधे सादे दीन गुरु से आज के आडम्बर प्रिय शिष्यों को संतोष कहां ? अतः आज कल स्थानकमार्गी समाज में जो नये ढंग के विद्वान् पैदा हुए हैं वे अपनी वाक् पटुता, मनोहर लेखनशैली और अलौकिक अलङ्कत शब्दावली से अच्छे से अच्छा उपन्यास तैयार कर सक्ते हैं । इस हालत में लौकाशाह का जीवन एक उपन्यास के ढंग पर तैयार कर अपनी कृतज्ञता का परिचय दें इसमें आश्चर्य की बात ही क्या हो सकती है ? परन्तु दुःख है कि वे सर्वतो भावेन ऐसा कर नहीं सकते । कारण आपके पूर्वज लौकाशाह का ऐसा साधारण जो लेन लिख गए हैं वही इनके कार्य में बाधा डालता है। फिर भी नई रोशनी के कर्मशील लेखक एकान्त हतोत्साह नहीं हुए हैं, वे किसी न किसी रूप में लौकाशाह का महत्व भरा जीवन प्रकाशित कर ही देते हैं, जनता उसे सच्चा समझ या झूठा। इसकी इन्हें परवाह नहीं । पर यह कार्य नैतिकता से जरूर विरुद्ध है। यदि स्थानक मार्गी समाज को लौकाशाह का सादा किंतु सच्चा जीवन पसन्द नहीं है तो उसको चाहिये कि अपने सर्वमान्य लेखकों का सम्मेलन करें और वहां सर्व सम्मति से एक ही लक्ष्य बिन्दु को दृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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