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________________ २९५ पंजाब की पटरावलि हैं कि "भगवान् शंकराचार्य ने जैनों के म्याद्वाद का सर्वतो भावेनः समीक्षण नहीं किया किन्तु एकाङ्ग का ही अवलोकन कर अपना निर्णय दे दिया" उसी प्रकार जेठमल जी ने भी मूर्ति के मार्मिक महत्त्व को न जान कर केवल अपनी कुयुक्ति प्रदर्शनी हा कायम की है। क्योंकि जेठमलजीने शाश्वती जिनप्रतिमाओं को कामदेव की प्रतिमा बतलाई है और स्थानकवासी विद्वान उसी प्रतिमाओं को तीर्थङ्करों की प्रतिमाएँ मानते हैं । यह तो मात्र एक उदाहरण हैं। अन्यथा ऐसी २ अनेक बातें हैं जिनका जेठमलजी को तात्विक ज्ञान था ही नहीं। सच्चे सिद्धान्त के समर्थन में क्या स्वपक्षा और क्या प्रतिपक्षी दोनों आखिर एकमत हो ही जाते हैं तभी तो किसी ने कहा है कि: "सचाई छिप नहीं सकती बनावट के उसूलों से । कि खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलों से ॥" 1 x x x x . ऐ० नों० पृष्ट १६५ में श्रीमान् शाह ने अपनी जुम्मेवारी का बचाव करते हुए एक पंजाब की पटावली का उल्लेख किया है। वह भी खास विचारणीय है क्योंकि इस करतबी मत में कैसे २ करतबी जाल रचे जाते हैं ? इसका पाठकों को सम्यग् ज्ञान हो जाय । पंजाब की पटावलीकारों ने अपनी पटावली ठेठ भगवान महावीर प्रभु से मिलादी है। इसी प्रकार कोटा समुदाय वालों ने भी अपनी पटावली प्रभुमहावीर से जाकर मिला दी है । यद्यपि इसका उल्लेख शाह ने तो नहीं किया है किन्तु वह पटावली मेरे पास वर्तमान में मौजूद है। आज स्थानकवासियों के जितने समुदाय, टोले और सिंघाड़े Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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