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ऐ० नो० की ऐतिहासिकता
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हैं वे सब के सब अपने आदि पुरुष धर्मसिंहजी लवजी और धर्मदासजी को मानते हैं। और धर्मसिंहजी लवजी और धर्मदासनी अपना मूल उत्पादक श्रीमान् लौंकाशाह को बताते हैं तथा लोकाशाह के पूर्व जैनश्वेताम्बरसमुदाय में मूर्त्ति नहीं मानने वालों का कहीं अस्तित्व भी दृष्टिगोचर नहीं होता है । स्वामी मणिलालजी ने "प्रभुवीर पटावली” लिखी है उसमें भी कामत व स्थानकवासी समुदाय का मूल उत्पादक श्रीमान् काशाह को ही लिखा है तथा इस विषय में श्रीमान् शाह और श्रीसन्तबालजी भी सहमत हैं ।
किन्तु अब जरा पंजाब की पटावली की ओर दृष्टिपात कर देखिये कि उन्होंने भगवान् महावीरप्रभु से २७ वें पाट पर श्रागम पुस्तिकारूढ करनेवाले नन्दीसूत्र के रचयिता श्रीदेवद्विगणि क्षमाश्रमणजी को माना है । स्थानकवासी समुदाय ३२ सूत्रों में नन्दीसूत्र को भी एक माननीयसूत्र मानते हैं और नन्दीसूत्र की स्थविरावली में भगवान् महावीर से २७ वें पाट पर देवर्द्धिगणि क्षमा श्रवण का नाम है। पंजाब की पटावली आधुनिक लोगों ने कल्पित तैयार की है पर वे पटावली की पृथक् कल्पना करते हुए अपने मान्य श्रीनन्दीसूत्र को सर्वाश में ही भूल गए । अतः श्रीनन्दीसूत्र के २७ पाट पञ्जाबकी पटावलि से नहीं मिलते हैं और पंजाब की पटावलि में जो जैनपटावलि से लिये हुये नामों को अलग करदें तो एक भी नाम श्रीनन्दीसूत्र की थेरावलि से नहीं मिलते हैं फिर भी तुर्रा यह कि पंजाबवाली पटावलि से कोटावाली पटावलि नहीं मिलती है पंजाब और कोटावाली पटावलियों से स्वामिश्री मणिलालजी की प्रभुवीर
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