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________________ मन्दिर में या प्रेम में फंसना - - - सुधारक कहे जाने वालों की यह भिन्न २ निम्न दशा देख किस सहृदय को आघात नहीं पहुँचता है तथा इन सुधारक प्रचलित मत से घृणा नहीं होती है ! ___ पाठकों ! क्रिया उद्धार करना कुछ और ही बात है । शाह आदि क्रिया उद्धार करने का जो अनर्गल आलाप करते हैं वस्तुतः यह क्रियोद्धार नहीं है । यह तो क्रियोद्धार की ओट में सुसंगठित जैन समाज की मात्र शिकार खेलीगई है। वास्तविक क्रियोद्धार तो पन्यास श्रीसत्यविजयजी गणी ने तथा लौकागच्छीय यति जीवा जी ने किया था। इन दोनों महापुरुषों ने अपने अपने गुरु की परंपरा का पालन कर, शासन में किसी भी प्रकार से न्यूनाsधिक प्ररूपणा न कर केवल शिथिलाचार को ही दूर कर उप विहार द्वारा जैन जगत् पर अत्युत्तम प्रभाव डाला था । अतः इन असली क्रियोद्धारकों के बारे में आज पर्यंत किसी ने किसी प्रकार का कुछ भी आक्षेप नहीं किया है बल्कि शिथलाचारी भी इनका उपकार मानकर प्रशंसा की हैं। प्रिय पाठक वर्ग! क्रियोद्धार करना उसका नाम है जिससे जैनधर्म, जैनजगत्, और जैनशास्त्रों को लाभ पहुंचने की संभावना हो। अब इस विषय को ज्यादा न बढ़ा, पुनः शाह का निजी. खजाने की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित करते हैं । शाह ने ऐ० नोंध के पृष्ट १३५ पर अपने पास की एक पटावली का हवाला देते हुए यह लिखा है कि: " x x ये चारों मुनि लवजी, भाणाजी, सुखाजी सोमजी आदि जब स्थंडिल भूमि से पीछे लौट रहे थे, तब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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