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ऐ० नो० की ऐतिहासिकता
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ढूंढिये हुए x x x मेरे अल्प बुद्धि अनुसार इस तरकीब से जैन धर्म को बड़ा भारी नुकसान हश्रा । इन तीनों (धर्मसिंह लवजी धर्मदासजी) के तेरह सौ (१३०० ) भेद हुए (इसका उल्लेख इसमें पहिले भी हुआ है)।"
ऐ० नों० पृष्ठ १४१ पाठक वर्ग! शाह के इन शब्दों को ध्यान में लेकर विचार करें कि इन सुधारकों ने जैन धर्म को कैसा नुकसान पहुँचाया और अभी भी पहुँचा रहे हैं । लौकाशाह ने जैनयतियों की निंदा कर, नयी प्ररूपणा कर, नया मत निकाल जैनों के संगठन के टुकड़े किये, और जैनधर्म को सांघातिक चोट पहुँचाई, वैसे ही धर्मसिंहजी लवजी और धर्मदासजी ने भी लौकागच्छ के यति व श्रीपूज्यों की निंदा कर नयी २ कल्पनाएँ गढ़, लौकागच्छ को नुकसान पहुँचाया है। यदि ऐसों को सुधारक कहा जाय तब तो भीखमजी को भी -सुधारक क्यों न कहा जाय ? क्योंकि उन्होंने भी स्थानक वासियों की निंदा कर अपनी नयी कल्पनाएँ गढ़ दया दान में भी पाप बताया है। भीखमजी के अनुयायी तो यहाँ तक कहते हैं कि:
"नहीं हुता भीखम स्वामए,
पाखारिड बैठता घर मांडए।" यदि तेरह पन्थियों का यह कथन सत्य है तो उस समय यदि भीखमजी नहीं होते तो ढूंढिया, साधुमार्गी, बावीस टोला, एवं स्थानकवासी आदि पाखण्डी घर मांड २ के बैठ जाते !
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