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ऐ० नो० की ऐतिहासिकता
२८८ इनमें से एक मुनि पछेि रह गए, उन्हें कुछ यति मिले, वे यति रास्ता बताने के बहाने मुनि को अपने मन्दिर में ले गए
और तलवार से मारकर मुनि के शव को वहीं गाड दिया x x" - +
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+ ___ शाह की निजी पटावली का तो यह उल्लेख है जो ऊपर लिख चुके हैं और अब शाह के प्रतिपक्षी इसके विषय में क्या लिखते हैं इसका उल्लेख नीचे करते हैं, पाठक जरा ध्यान से पढ़ें
"जब लवजी का वह एक साधु एक मुसलमान के घर में गया और उस मुसलमान की औरत के साथ प्रेम में फंस गया भवितव्यता ऐसी बनी कि उसी समय मुसलमान घर पर आया और अपनी औरत की बेइज्जती देखते ही उसको गुस्सा आया और वह क्रोध से लाल बबुला हो गया तथा म्यान से. तलवार निकाल कर उस व्यभिचारी साधू के टुकड़े २ कर दिये।"
एक हस्त लिखित प्रति का उतारा इन दोनों घटनाओं में कौन सत्य है ? यह तो सर्वज्ञ भगवान् ही जान सकते हैं। परन्तु इतना अनुमान अवश्य किया जा सकता है कि उस समय के जैन यति, या लौकागच्छ के यति, न तो कोई पास में तलवारें रखते थे, और न कोई जैन मन्दिरों में या लौकागच्छ के देरासरों में ही तलवारों के देर रहते थे कि जिससे वे झट लवजी के साधु को अन्दर बुलाकर मार डालते । विशेष आश्चर्य तो यह है कि पृथ्वी, पानी और वनस्पति का स्पर्श के
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