SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ऐति. नोध की ऐतिहासिकता २५८ क्या वस्तु धर्म का प्रतिपादन करना, यह जनता को उपदेश देना है ? नहीं। यदि नहीं है तो फिर शाह को समझना चाहिये 'कि उन प्रन्थकारों ने वस्तु धर्म का प्रतिपादन करने में क्या बुरा किया, उनकी ओट में जैनधर्म के स्थम्भ धुरंधर प्राचार्यो की निंदा की जाय फिर भी कोई व्यक्ति यदि जैनधर्म के विरुद्ध कुछ लिखे तो उसकी जिम्मेवारी समस्त जैनसमाज पर कदापि नहीं हो सकती। ___ शाह, स्वयं क्या यह मानने को तैयार हैं कि यदि कोई स्थानकवासी अपने समाज मान्यता के विरुद्ध कुछ लिखे तो उसका उत्तरदायित्व सर्व स्थानकवासी समाज पर होगा ? । शायद यह संभव हो सकता है कि यदि शाहकी एक आँख में पेचक का रोग होगया हो तो उनका लक्ष्य बिन्दु जैन-धर्म के उत्तमोत्तम ग्रन्थों की ओर नहीं जा सका हो। जैसे:-"अनेका तजयपताका, अनेकान्तवाद-प्रवेश, स्याद्वादरत्नाकर, स्याद्वाद मञ्जरी, सम्मतितर्क, प्रमाण नय तत्त्वाऽलंकार, न्यायाऽऽलोक, न्यायाऽवतार, न्यायाऽमृततरङ्गिणी, न्यायप्रवेश, नयचक्रवाल, नय द्रव्यप्रमाण, द्रव्यालङ्कार, कर्मग्रन्थ, कर्मप्रकृति, पंचासक, पंचप्रमाण, प्रमाणमीमांसा, तत्वप्रवेश, सर्वज्ञसिद्धिप्रकरण, अध्यात्म कमल मार्तण्ड, अध्यात्मसार, अध्यात्मदीपिका, अध्यात्म कल्पद्रुम, ध्यानसार, ध्यानदीपिका, योगप्रदीप, योगकल्पद्रम, योगसार, तत्त्वार्थसूत्र, षड्दर्शनसमुच्चय आदि हजारों लाखों प्रन्थ हैं जिनकी कि पौर्वात्य और पाश्चात्य विद्वानों ने मुक्त कण्ठ से भूरि भूरि प्रशंसा की है। परन्तु वा० मो० शाह को इससे क्या मतलब, उन्हें तो "येन केन प्रकारेण” जैनाचार्यों को Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy