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जैनाचार्यों के प्रन्थ हलका दिखाना तथा उनकी निंदा करना है और इसके लिए वे अच्छे बुरे चाहे जिस किसी मार्ग का अवलंबन करने को तैयार भी हैं । शास्त्रकारों ने ठोक हो कहा है कि "काग कुत्ता कुमाणसों, सूअर और साँडा ये अच्छे पदार्थों को छोड़ बुरी वस्तुओं पर ही अपनी जीभ लप लपाया करते हैं और बदला में विषय उगलते हैं।" ___आगे जैनाचार्यों के ज्ञान के विषय शाह के ये उद्गार उन जैनाचार्यों के प्रति व्यक्त किये हैं जो मन्दिर मूर्तियों के मानने वाले और मुँह पर दिनभर मुँहपत्ती बाँधने का निषेध करने वाले हैं। क्योंकि शाह स्वयं तो मन्दिर मूर्तियों की पूजा छोड़कर और दिनभर मुँह पर मुँहपत्ती बाँधने में ही जैनधर्म को उन्नति मानता है, और यह ज्ञान (वस्तुतः अज्ञान ) उन पूर्ववर्ती जैनाचार्यों में नहीं था, और न उन्होंने ऐसा उपदेश ही दिया, इससे ये धुरन्धर जैनाचार्य शाह को फूटी आँख भी नहीं सुहाते हैं। आगे शाह ने जो श्राक्षेप आचार्यों के उन अलौकिक चमत्कारों पर किया है, यह भी शाह को मात्र अज्ञता ही है । शाह ने शायद इन चमत्कारों को बच्चों का खेल ही समझ लिया है, पर यह ऐसा नहीं है । शाह यदि किन्हीं जैन विद्वान की कदमपोषी कर उनसे उत्पत्तिक-सत्र सुनने का कष्ट करते तो उनका यह भ्रम भी दूर हो जाता, और यह पता चल जाता कि जैन धर्म में इन चमत्कारों का आसन कितना ऊँचा है और ये किन घोर तपों द्वारा प्राप्त होते हैं । जैनशास्त्र जिन्हें लन्धि नाम से पुकारते हैं वही चमत्कारों का पर्यायवाची शब्द है । जब एक समय शाह के पूर्वज तथा लौकाशाह आदि के पूर्वज जो कि मांस, मदिरा, व्यभिचार आदि कुव्यसनों का
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