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________________ २३९ १३ इण काल सौराष्ट्र धराई, नागनेरा तटिनी तट गामहः हरीचंद श्रेष्ठी तीहां वसई, मउंचीबाइ घरणी शील लसंइ. १० पुनम गच्छंइ गुरुसेवनथी, शैयदना आशीष वचनथी; पुत्र सगुण थयो लखु हरखीं, शत चउदे सतसीतर वर्षी ११ ज्ञानसमुद्र गुरुसेवा करतां, भणी गणी लहीउं बन्यो तव त्यां द्रम्म कमाणी श्रुतनी भक्ति, वधइ रंगइ धर्मनी शक्ति. १२ आगम लखइ मनमां शंकर, आगम साखी दान न दीसइ; प्रतिमा पूजा न पडिकमणुं, सामायिकं पोसह पीण कमणुं. श्रेणिक कुणिक राय प्रदेशी, तुंगीया श्रावक तत्व गवेषी; किणइ पडिकमणु नवी कीधुं, किणइ परने दान न दीधुं. १४ सामायिक पूजा छह ठोल, जती चलाइ इण विध पोल; प्रतिमा पूजा व संताप, तो अम्हि करीइ धर्मनी थाप. १५ अविधि लुंपइ लुंपक नाम, लखुको नामह लउको नाम; नही संयत पीण यतीथी अधिकुं, लोकोंइ मत परखीउं लउकुं. १६ संवतु पनर (१५) सत (००) अडवरपि (८), सिद्धपुरीइ शिवपद हरषी; खोली थापीउं जिनमत शुद्ध, लुंकउ गच्छ हुआ परसिद्ध. १७ पातशाही महमुद सयाग, मानी इ लुंकामत परमाण; सुवा सेवक सउको मानह, लखु गुरु चरणिं शीश नामइ. १८ वि सोरठइ लीबडी गाम, कामदार अछे लखमशी नाम; लुंका गुरुनो ग्रही उपदेश, धर्म पसारओ देश विदेश. १९ इणमत विषय मंडवाद, न्यायाधीश करइ पक्षपात; शत पन्नर तेत्रीस (१५३३) सालइ, छप्पन वरसिं सुरघर महालइ. २० शत पन्नर तेत्रीशनी सालइ[१५३३] भाणजीने ते दीक्खा आलइ; भाणजी रीखी सतमत फेलावर, जीवदयानुं तत्त्व बतावह. २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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