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________________ २३८ लोकागच्छीय यति केशवऋषिकृतलौकाशाह का सिलोको वीर जिणंदना प्रणमी पाथ, समरी सरसती भगवती मायः गुरु प्रणमी कर सिलोको, इक मनी करी सुणज्यो लोको. १ चरम जिनेश्वर श्री वर्धमान, गणधर एकादश गुणखाण, पाटपरंपरा तेहनी कहीई, भणतां गणतां शिवसुख लही. पांचमुं गणधर सोहम साम, जंबुस्वामी प्रभव गुणधाम; सीज्जंभव जसभद्रा नामी, संभुती भद्रबाहुस्वामी. ३ स्थूलभद्र पातरना त्यागी, महगीरी सुहस्ती वडभागी; बहुलनी जोडी स्वाती स्वामी, कानिक सूरि स्कंदील स्वामी. आर्यसमुद्र श्री मंगु धर्म, भद्रगुप्त नेहं स्वामी वजर; सींहगुरु धनगुरुना शिष, वजरस्वामीजी धुरी जगीश. ५ वयरसेन श्रीचंद्र सुनंदा संमतभद्रजी स्वामी मुनींदा ; सीतपट दीगपट.... पाय, महीं करइ तप ऋषिराय . ६ मलवादी वृद्धवादी ज्ञानी, सिद्धसेन नय न्याय प्रमाणी; वादी देव ने हेम सूरींद, परवशीं प्रगट्या मुनींद इम अनेक मुनिपती मोटा, पाटपरंपरइ कर्मइ छोटा; जगिइचंद्र रुपी तपशुरा, विजयचंद गुरु पावन पुरा. खीमा कीरतजी हेमजी स्वामी, यशोभद्र रत्नाकर नामी; रत्न प्रभु रुषीवर मुनि शेखर, धर्मदेव अने ज्ञानी सूरीश्वर. ९ वन Jain Education International For Private & Personal Use Only ४ ८ www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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