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पनरसय अठ्योतर जाणउं, माघ शुद्धि सातम प्रमाणउं । भानुचंद यति मति उल्लसउ, दया धर्म लुंके विलसउं ॥ २५ ॥
१ इस चौपाई का कर्ता वि. सं. १९७८ में यति भानुचन्द्रने लौंकाशाह का जीवन पर ठीक प्रकाश डाला हैं । यति भानुचन्द्र का समय भी लौंकाशाह के बाद ३७ या ४६ वर्ष का होने से इस पर विश्वास भी हो सकता है । यति भानुचन्द्र के समय तक तो जैनयति, लौंकाशाह के अनुयायियों पर यह आक्षेप किया करते थे कि लौंकाशाहने सामायिक, पौसह, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, दान, देवपूना और आगम मानना अस्विकार किया था परन्तु भानुचन्द्र के समय शायद लौंकाशाह के मूल सिद्धान्त में थोड़ा बहुत सुधार हुआ हों-जैसे सामायिक दो काल (सांम सुबह) में ही हो सत्की हैं, पौसह पर्व दिन में, प्रतिक्रमण व्रतधारी को, पच्चखाण विना आगार ही हो सके, दान असंयति को न देना और द्रव्यपूजा नहीं पर भावपूजा करना तथा जैनागमों में ३२ सूत्र मानना । यह मान्यता भानुचन्द्र के समय थी बाद तो इस में भी सुधारा होता गया और आज नागोरी लूकागच्छ विगेरह में सब प्रवृति जैनियों के सदृश ही दृष्टिगोचर होती हैं।
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