SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३५ आवs अमदाबाद मझार, नाणावटीनो करइ व्यापार । धर्म सुणवा जावई पोसाल, पूजा सामायिक करइ त्रिकाल || ६ || सांभलइ यति तणु आचार, पण नवि पेखइ यतिर्हि लगार । कहइ लुंको तमे पभणो खरउ, वीर आणाथी चालो परउ ||७|| ses यति अम्ही रहे धरम, तमे किम जाणो तेहनो मर्म ? पांच आश्रव सेवता तम्हे, सिखामण देवी सही गमे ॥ ८ ॥ सा का कहे दयाइ धर्म, तमे तो थापिओ हिंसा अधर्म । फट भुंडा कहां हिंसा जोई, यति सम दया पालइ कोई ||९|| सा लंका आ मान अपमान, पोसालइ जावा पच्चक्खाण | ठाम ठाम दयाइ धर्म कह्यो, साचो भेद आज अम्हि लह्यो ॥ १०॥ हाउ बइठो दे उपदेश, सांभली यतिगण करइ कलेस | संघनो लोक पण पखियो थयो, सा. लंका तब लींबडी गयो ॥ ११ ॥ लखमसी ते तिहां छइ कारभारी, सा. लुंकानो थयो सहचारी । अमारा राजिभां उपदेश करो, दयाधर्म छइ सहुथी खरो ||१२|| दयाधर्मी थयो बहु लोग, एहवि मल्यो भाणानो संयोग । घरडउं लुंको नवि दीक्षा लहिं, पिणभाणो पोते वेष ग्रही ॥ १३ ॥ दया धर्म जहहलती ज्योत, सा. लुंके किधुउ उद्योत । पनरसय बतीसउ प्रमाण, सा. लुंको पाभ्यो निवाण ॥ १४ ॥ दयाधर्म जयवंतो दीसई, कुमति घणुं निदे खींसह । कह्यो लुको मति मानज्यो यति, सामायिक पण कांणे कथी ॥ १५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy