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परिशिष्ट नं. २ लौकागच्छोय विद्वानों का लिखा हुआ लौंकाशाह का जीवन लौकागच्छीय यति भानुचन्द्रकृत
दयाधर्म चौपाई* वीर जिणेसर पणमि पाय, सुगुरु तणु लह्यो सुपसाय । भस्मग्रहनो रोष अपार, जइन धरम पड़ियो अन्धकार ॥१॥ दुय सहस वरसि अंतरे इस्युं, जि जिं वरत्यूं कहिइ किस्युं । दया धरमनी थइ झांकी ज्योत, सालुंकइ किधउ उद्योत ॥२॥ सोरठ देसे लींबडी गामई, दसाश्रीमाली डुंगर नामई । धरणी चूड़ा चित्त उदारी, दीकरो जायो हरष अपारी ॥३॥ चौदसय ब्यासी वइसाखई, वद चौदस नाम लुंको राखइ । आठ वरिसनो लुंको थयो, सा डुंगर परलोकइं गयो ॥४॥ लखमसी फुइनो दीकरउ, द्रव्य लुंकानुं तेणइ हरउं । उमर वरिस सोलहनी थई, चूड़ा माता सरगि गई ॥५॥
* इस चौपाई का एक पन्ना यतिवर्य्य लाभसुन्दरजी का ज्ञानभंडार से मिला था, उसकों ज्योंका त्यों यहां मुद्रित करवाया हैं।
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