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वीर सामि अतिशय परवरिया, ते नावइ बइसी उतरिया, मारगि गंगा नदी प्रवाहि, ए अक्षर आवश्यकमांहि. १४० श्री इनकापूत्र सूरिंद, बइठा बेडी मनि आणंद, लोक तणउ मिलीउ बहू वर्ग, वयरी देव करइ उपसर्ग. १४१ जिहां बइसइ सहि गुरुराय, तिहां तिहां बेडी नीची जाइ, गंगा नदी महाजलि भरी, लोके गुरु नांख्या करि धरी. १४२ तिणि अवसरि ते सुर प्रतिकूल, पडतां हेठलि धरइ त्रिशूल, सिर वींधाणइ शोणित झिरइ, सहिगुरु हीइ विमासण करइ. १४३ मझ सिरि लोही खारु हुसिइ, जलना जीव मरण पामिसिइ, सवि कहइ ऊपरि समता धरइ, शुभ ध्यानि केवल सिरि वरइ.१४४ बइठा बेडी इस्या सुमेध, किम थाइ तेहy निषेध ? जमली साखि समयनी देखि, संथारग सुयन्नूं पेखि. १४५ श्रीमुखि अरथ कहइ अरिहंत, रचइ सूत्र गणधर गुणवंत, प्रतेकबुद्ध नई श्रुतकेवली, दस पूरवधर बोल्या वली. १४६ एहनु भाखिउ आगम होइ, जिनशासनि जयवंतु सोइ, तासु पक्ष मई अंगी कीध, रे कुमती तुम्ह उत्तर दीध. १४७ जे पूछ, हुइ ते कहु, कांइ म अणबोल्या थइ रहु, सुगुरु पसाई त्रिभुवनि सार, जाणूं आगम अस्थ विचार. १४८ तेज पुंज जां सोहइ भाण, तां खजुआनूं किसिउ पराण ? जां हुइ चिंतामणिनु द्याप, तां काकरतुं किसिउ प्रतापाधन. १४९ जांसुरगिरितां सरिसव किसिउ? मृगपति आगलि जंबुक जिसिउ, तिम आगमि जु एहवू कहिउं, तु बोलवू तु म्हारुं रहिउं. १५०
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