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________________ २२२ तुम्हे मंडिउ गिरि नखि भेदिवा, तरु मंडिउ मूलिई छेदिवा, तुम्हनई रीस करुं हिव किसी, सवि कुबुद्धि तुम्ह हिअडइ वसी. १२९ तुमि जणि इणि सिउ थाइसिइ, ए कूटिउ वाई जाइसिइ, एहना चरण शरण हिव लीउ, ए पाधरसी नहीं वरतीउ. १३० तव बंभण बोलइ करजोडि, देव दया करि अम्हनई छोडि, छोरु होइ कुछोरु कदा, मायवापि सांसहि सदा. १३१ ए उत्तमना घरनी रीति, कुवचन किसिउ न चुहटइ चीति, गुण मणि रयणायर छउ तुम्हे, एक वरांसु लहिणउ अम्हे. १३२ विनय वचनि मनि रंजिउ यक्ष, तव मूक्यां माणसना लक्ष, गयुं यक्ष जइ बइठउ ठामि, उठ्या विप्र सवे सिरनामि. १३३ भणइ विप्र हो रिषि धन धन्न, कृपा कर लिउ खपतूं अन्न, यज्ञ भणी झाझा परहूणा, अम्ह मंदिरि आव्या छइ घणा. १३४ मासखमण केरइ पारणइ, गया विप्रनई घर बारणइ, सरस गविल विहरावइ पाक, कूर दालि घृत झाझा शाक. १३५ विहरइ मुनिवर खपती खीर, घोल घणुं नई फासू नीर, भाव सहित इम भिक्षा देइ, वंदइ बंभण भाव धरेइ. १३६ दान पुण्य महिमा विस्तरइ, कुसुमवृष्टि तिहि सुरवर करइ, ततखिणि विप्र तणइ अंगणइ, सोवनवृष्टि हुइ सहू भणइ. १३७ वार करी मुनि वहठउ जिसिइ, ब्राम्हण वंदणि आव्या तिसिइ, धर्म तणइ उपदेसिंह करी, प्रतिबोध्या बंभण कुंअरी. १३८ हरिकेसी रिषि विहरिउं इम, ऊद्देसिक नवि लागु तिम, श्री उत्तराध्ययन छइ सार, ए सघलु तिहि करिहिउ विचार.१३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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