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यज्ञ जाण ब्राह्मण छइ जिहां, रिषि रमणी ते आपी तिहां, केते दिनि अंतरि लही लाग, ब्राह्मण मंडइ मोटउ याग. ११० ब्राह्मण वर्ग मिलिउ तिहि बहू, हुइ किंपि ते सुणज्यो सहु, राजकुंअरि परणीती जेणि, ते रिषि आविउ भिक्षा लेणि. ११९ सिरि मइलु पणि मति ऊजली, हाथिई दंड कंधि कांबली, यज्ञ पाटि जइ ऊभउ रहइ, धर्मलाभ हरिकेसी कहइ. १२० तव बइठा बंभण खलभलइ, के त्रासइ के अलगा टलइ, के ऊतावलि ऊंचा चडइ, ए वरतीउ रखे आभडइ. १२१ यागमांहि जे बंभण वडा, ते बोलइ रहिआ इक तडा, धान अम्हारइ अछइ अबोट, जां नहीं तरि कइ पामिसि चोट. १२२ ऊठ्या लुंटउकेवि अतिचंड, मेल्हइ साट सरीसा दंड, के हासई तरुणा छोकरा, लहकई सेउ लांखइ कांकरा. १२३ राजकुंअरि ते रिषि ओलखइ, चिंतइ लोक किसिउं ए झखइ, हातूं छाजइ जेहसिउं लाड, ए रिषि हसतां भांजइ हाड. १२४ कुंअरी बोलइ सहुको सुणउ, ए मुनिवरनु महिमा घणउ, जइ ए रिझिनइ ऊवेखिसिउ, तु फिरतां देउल देखिसिउ. १२५ एहनूं हांसं अम्हनई फलिडं, राजरिद्धि सुख सगलुं टलिउं, जिम जिम कुंअरि निवारइ फिरइ,तिम उपसर्ग घणेरा करइ. १२६ रिषिनई वेदन जाणी घणी, आविउ यक्ष सखायत भणी, इसिउं पेखि कोपिइंधमधमइ, पडीआ विप्र मुखि लोही वमइ. १२७ कुंअरि भणई हिव किम ऊठिसिउ, संकष्ट दोहिला छूटिसिउ, ए ऊखाणू साचउ होइ, विण भाट मानइ कोइ कोइ. १२८
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