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________________ २२० १०७ हरिकेसी नाभि मातंग, पामी दोष हउ मुनि चंग, इक दिनि विहरंतु संचरह, यक्ष तणइ देउलि ऊतरह. तिहि आसनूं नयर सुविशाल, कौसल नामि भलु भूपाल, तसु बेटी छ भद्रा नामि, यक्ष प्रति नितु जाइ प्रणामि, १०८ तिणि दिणि यक्षभवनि गइ जाम, रिषि रहीउ तु काउसगि ताम, पेखी दूबल मल आधार, कुंअरी कीधउ घूघूकार. १०९ कुपिउ यक्ष तव कुंअरि छली, वजंती घर मंडलि ढली, मात तात मिलिउं परिवार, नवि लागइ ऊषध उपचार. १९० भूत प्रेत वरि व्यंतर कोइ, भणइ भूप कुण वलगु होइ, प्रगट थइ ते कारण कहुँ, जिम मनवंछित बिमणां लहु. १११ जिम घृत वैश्वानर डहडिउ, भणइ यक्ष तिम कोपि चडिउ, सुणज्यो बोल अम्हारुं कहिउ, अम्ह देउलि रिषि आवी रहिउ . ११२ क्षमावंत ते महामुनि तणी, कीधी कुंवरि अवन्या घणी, हासईं बोल्या बोल कुबोल, मुनि किउ अवगणी निटोल. ११३ नहीं साखं एहनुं अन्याउ, सिउं करिसिह रीसाविउ राय, तु मुंकुंजु रिषिनई वरई, नहीं तरी कुंअरी निवई मरइ. ११४ इसिउं वचन राजा संभलइ, कुंअरी दृखि घणुं टलक्लड, वेदन टालि भइ नरनाह, करिसिउं रिषिसरि सुवीद्याह. ११५ ततखिणि आणिउ सवि समुदाय, कुंअरी घेत वलिउ तिणिठाय, यक्ष महारिषि सिरि अवतरी, तिणि वेलां ते कुंअर वरी. ११६ रिषि प्रभाती चालिउं सज थइ, कुंअरी पिता तणइ घरि गइ, भूपति भणइ अम्हारइ राजि, रिषि रमणी नवी आवड़ काजि . ११७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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